For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

भाषा यह हिन्द (त्रिभंगी छंद)

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे ।
जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।
क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ।।

Views: 616

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 15, 2016 at 7:25pm
आदरणीय श्री रमेश कुमार चौहान जी सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई ।
Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on September 15, 2016 at 4:37pm

कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने । - ये पंक्ति बहुत सुंदर लगी  | वाह  ! 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 15, 2016 at 4:15pm

आदरणीय रमेश चौहान जी,  आपका छन्दशास्त्र के प्रति आग्रही होना मुग्ध करता है. परन्तु यह भी सही है कि आप वर्तनी या भाषा व्याकरण के प्रति तनिक सुस्त रहा करते हैं. अब इसी प्रस्तुति को देखिये --

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत मां के, माथ भरे ।..............  मां  या माँ ?
जन मन की आषा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।।............ आषा या आशा ?.. जन मन के बीच योजक चिह्न (-) आयेगा.
कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने ।.............. 
एक दिवस ही क्यों, पर्व लगे ज्यों, निषदिन निषदिन, कंठ सने ।। ..... प्रथम चरण में लय-भंग की स्थिति है. त्रिकल का संयोजन सही नहीं है. आप ’एक’ जैसे त्रिकल से प्रारम्भ कर उलझ गये हैं. दूसरी बात, ’निषदिन’ कौन सा शब है ? शुद्ध शब्द है ’निशदिन’ 

त्रिभंगी छन्द के नियम को यदि ध्यान से देखिये, तो यह अवश्य लिखा होगा, कि प्रथम चरण का प्रारम्भ शुद्ध द्विकल से करना चाहिए.

बहरहाल इस अभ्यास को मैं पूर्ण समर्थन देता हूँ.

एक सुझाव है, आदरणीय,

अभी यह मंच ऐसे सदस्यो की सक्रियता से प्राणवान है जिनकी शास्त्रीय छन्दों पर बहुत अच्छी पकड़ नहीं है. बेहतर होगा आप प्रयुक्त छन्दों के मात्रिक या वर्णिक सूत्र दे दिया करें. इससे पाठकों को समझने सहजता होगी.

जैसे त्रिभंगी छन्द का मात्रिक सूत्र है - १०, ८, ८, ६

 

Comment by Samar kabeer on September 15, 2016 at 3:58pm
जनाब रमेश कुमार चौहान साहिब आदाब,आपकी छन्द रचना अच्छी हुई,बधाई स्वीकार करें इस प्रस्तुति पर ।
Comment by Aditya Kumar on September 15, 2016 at 12:44pm

बहुत सुन्दर आदरणीय  रमेश कुमार चौहान जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
13 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service