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ग़ज़ल- छिपे मक्कार हैं बहुत (गिरिराज भंडारी)

221    2121    1221      212

शब्दों की ओट में छिपे मक्कार हैं बहुत  

बाक़ी, अना को बेच के लाचार हैं बहुत

 

किसने कहा कि बज़्म में रहना है आपको

जायें ! रहें जहाँ पे तलबगार हैं बहुत

 

अपनी भी महफिलों की कमी मानता हूँ मैं

है फर्ज़ में कमी, दिये अधिकार हैं बहुत

 

समझें नहीं, कि अस्लहे सारे ख़तम हुये

अस्लाह ख़ाने में मेरे हथियार हैं बहुत

 

नफरत जता के हमसे, जो दुश्मन से जा मिले

वे भी मुहब्बतों के क्यूँ हक़दार हैं बहुत

 

धो लीजिये हुज़ूर हथेली कहीं से आप

ज़ह्नों के साथ, हाथ गुनहगार हैं बहुत    

 

निकलेगा सूर्य तो ये भरम टूट जायेगा

गो रोशनी के सामने दीवार हैं बहुत 

**************************************

 मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 10:05pm

आदरणीय योगराज भाई , इस गज़ल को फीचर करने के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:40pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:39pm

आदरणीय अजय भाई , आपकी मुखर सराहना के लिये दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:38pm

आदरणीया छाया शुक्ला जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:37pm

आदरनीय सतविंदर भाई , आपका बहुत बहुत आभार , ग़ज़ल की सराहना के लिये ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:34pm

आदरनीया राहिला जी , हौसला अफज़ाई का तहे दिल से शुक्रिया आपका ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:33pm

आदरनीय आबिद अलि भाई , फौसला अफज़ाई का बेहद शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:32pm

आदरणीय श्याम नाराइन भाई , उत्साह वर्धन के लिये आपका हार्दिक आभार ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:31pm

आदरनीय मिथिलेश भाई , गज़ल पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया और मुखर प्रसंशा ने गज़ल कहना सार्थक कर दिया , आपका तहे दिल से शुक्रिया , हौसला अफज़ाई के लिये ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 5, 2015 at 9:29pm

आदरनीय बैज नाथ भाई , आपका तहे दिल से शुक्रिया ।

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