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बेरोजगारी / लघुकथा

कमरे में घुसते हुए वह अपनी चाल को संतुलित कर रहा था ,पर बैठते हुए थोडा़ लड़खड़ा गया ।

" आज इतनी देर कैसे कर दी आपने , कहाँ रह गये थे , खाना लगा दूँ ? " बाहर आॅफिस , घर में बेरोजगार पति , दोनों को ही काँच के बर्तन के समान संभालने की जिम्मेदारी भी वह बखूबी निभा रही थी कि आज ऐसे ....!

नजदीक जाकर गौर से देखी तो उनकी आँखें लाल हो रही थी । अचानक वह सोफे पर ही लुढ़क गया । एक पल के लिए उसकी धड़कन जैसे रूक गई ।

" क्या आपने ड्रग लिया है ...? "

" हाँ " अधनींदे ही वह लड़खड़ाती आवाज में जबाव दिया ।

" लेकिन क्यों , आपको किस बात का गम , मै तो हूँ ना सब करने के लिए ! "

" इसलिए तो ...! तुम नहीं समझोगी कामयाब पत्नी के नाकामयाब पति का दर्द ....." कहते हुए फिर से एक ओर लुढ़क गया ।

मौलिक और अप्रकाशित

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Comment

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Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:26pm

 आभार आपका  आदरणीय राजेंद्र जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:25pm

कथा को गहनता से  समझने के लिए आभार आपका आदरणीय डॉ गोपाल नारायण जी. 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:24pm

आभार आदरणीया  सविता  जी आपका कथा पसंदगी के लिए। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:23pm

कथा के मर्म को समझने के लिए तहेदिल आभार   आपका आदरणीया प्रतिभा जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:21pm

विषय समेत कथा की गंभीरता समझने के लिए आभार आपको आदरणीय। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:20pm

बिलकुल सटीक  मार्गदर्शन  दिया है आपने आदरणीय मिथिलेश जी।  मैं अभी इसे सुधार करती हूँ।  आभार आपका हृदयतल से।   

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:17pm

कथा को पसंद करने हेतु आभार आपका आदरणीय तेजवीर  जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:16pm

कथा को पसंद करने हेतु आभार आपका आदरणीय अजय कुमार शर्मा जी। 

Comment by RAJENDER KUMAR GAUR on October 30, 2015 at 7:50pm
बहुत सटीक कथा
Comment by RAJENDER KUMAR GAUR on October 30, 2015 at 7:49pm
व्यथा स्वाभिमानी की या ईर्ष्या पुरुष की
बड़ी पतली रेखा अलग करे

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