For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

महकती ज़िन्दगी हो फिर शिकायत कौन करता है

बिना कारण ही मरने की हिमाकत कौन करता है

 

तुम्हारी  आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे

तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है

 

बड़े काबिल हो तुम लेकिन तुम्हारी जेब है खाली,

भला ऐसों से भी यारा मुहब्बत कौन करता है|

 

कड़कती धूप भी सहते कभी बरसात ठंडी भी,

खुदा ऐसों पे तेरे बिन इनायत कौन करता है|

 

न पूजेगा कोई तुमको खुदा गर सामने आया ,

बिना डर और लालच के इवादत कौन करता है|

 

बने हैं बापू के बन्दर हमारे देशवासी सब,

हुकूमत के भला आगे बगावत कौन करता है|

 

शरीफों में मेरा भी नाम ‘मिंटू’ कर ले तू शामिल,

कि मैं भी तो जरा देखूं शराफत कौन करता है|

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 28, 2015 at 5:51pm

गिरिराज भंडारी साहेब जी .............. बहुत -बहुत शुक्रिया आपका|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 27, 2015 at 7:13am

आदरणीय बैज नाथ भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , दिल से बधाइयाँ आपको ।

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 26, 2015 at 10:22pm

कांता जी ......... शुक्रिया| 

Comment by DR. BAIJNATH SHARMA'MINTU' on October 26, 2015 at 10:21pm

मनोज अहसास जी---- शुक्रिया| 

Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 6:09pm

तुम्हारी आँखों में सूखे हुए कुछ फूल देखे थे
तड़पकर माज़ी से इतनी मुहब्बत कौन करता है----लाज़वाब शेर बन पड़ी है इस ग़ज़ल में सारे के सारे। बेहतरीन ,बधाई BAIJNATH SHARMA'MINTU' जी।

Comment by मनोज अहसास on October 25, 2015 at 8:57pm
आदरणीय बैजनाथ जी बहुत खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने
मंच की परम्परा है के ग़ज़ल के अर्कान सबसे ऊपर लिखे जाते है
जैसे इस ग़ज़ल के अर्कान 1222 1222 1222 1222 है
तो इन्हें सबसे ऊपर लिखे
मैं पहली रचना पर आपको बधाई देता हूँ
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"सीख (लघुकथा): 25 जुलाई, 2025 आज फ़िर कबूतरों के जोड़ों ने मेरा दिल दुखाया। मेरा ही नहीं, उन…"
19 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
Tuesday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service