For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

“और भाईजान कैसे है...सब खैरियत तो हैं न?” चिकन शॉप में काम करने वाले प्रकाश के मित्र जावेद ने शिष्टाचार के तहत पूँछा ।

“बस, रहम हैं ऊपर वाले का..और तुम्हारी कैसी गुजर रहीं है, बड़े दिन बाद आना हुआ ईधर ।” प्रकाश ने कहा ।

“बस, काम के सिलसिले में दिल्ली गया था कल ही तो लौटा हूँ...सोचा प्रकाश भाई कि शॉप से चिकन लेता आऊँ वैसे भी बड़े दिन हो गये तुम्हारे दुकान का चिकन खाए हुए ।” जावेद ने जवाब देते हुए कहा ।

“हाँ...हाँ, क्यों नहीं ।” प्रकाश ने कहा ।

“अरे! यार प्रकाश तुम भी आ जाना शाम को दुकान को बढ़ाने के बाद...बढ़ियाँ मिल बैठकर पार्टी कि जाएगी वैसे भी अब्बू, अम्मी हैदराबाद खाला के घर गये है ।” जावेद ने उत्तेजना भरे लहेजे में कहा ।

“भाईजान माफ करना यार मैं शाकाहारी हूँ...ये चिकन, मटन मुझसे नहीं खाया जाता ।” और इतना कहकर प्रकाश ने मुर्गे कि गर्दन को नश्तर से उड़ा दिया ।

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 476

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by DIGVIJAY on October 22, 2015 at 12:46pm
आदरणीया कान्ता रॉय जी यही इस समाज कि विसंगति हैं कि चोर चोरी करने से मना करता हैं....कत्ली कत्ल करने से...अक्सर यहाँ पर उपदेश गलत व्यक्ति द्वारा ही दिये जाते हैं..।।
यद्यपि सच्चाई यह हैं कि उपदेश देना श्रेष्ठ जनों का कार्य हैं सर्व जनों का नहीं । सादर
Comment by DIGVIJAY on October 22, 2015 at 12:43pm
आदरणीय ओमप्रकाश जी मैं अवश्य ही मिथिलेश जी के सुझाव पर गौर करँगा....वैसे आपका अार्शीवाद मिला मन प्रसन्न हुआ...।।
Comment by kanta roy on October 22, 2015 at 6:53am
चिकन विक्रेता का शाकाहार होना , एक चिंतन एक मनन दे गया । खाने वाला और काटने वाला ....... शाकाहार एक विभत्स विसंगति । ढेरों बधाई आपकी इस सार्थक लघुकथा के लिये आदरणीय दिग्विजय जी ।
Comment by Omprakash Kshatriya on October 21, 2015 at 8:00pm

आदरणीय DIGVIJAY जी मिथिलेश वामनकर जी ने बहुत ही उम्दा सुझाव दिया है. इस पर जरुर गौर कीजिएगा. वैसे आप की लघुकथा जानदार हुई है. बधाई .

Comment by DIGVIJAY on October 21, 2015 at 6:46pm

जी आपने मेरी लघुकथा पर अपना ध्यान दिया इसके लिए आपको धन्यवाद....मैं अवश्य ही आपके द्वारा सुझाए शीर्षक का चुनाव करूँगा..सादर ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 21, 2015 at 3:11pm

आदरणीय दिग्विजय जी, आपकी किसी पहली प्रस्तुति से गुजर रहा हूँ. बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. आपको हार्दिक बधाई. 

मेरे मन में विचार आया लघुकथा का शीर्षक शाकाहारी की बजाय विडम्बना या ऐसा ही और कुछ होता हो लघुकथा और मारक बन पड़ती क्योकि शीर्षक पढने के पाब लघुकथा की दों शुरुआत करते ही अंत का अनुमान भी लग जाता है जिससे पाठक को वो झटका नहीं लगता जो अपेक्षित है. सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-124 (प्रतिशोध)
"स्वागतम"
12 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

अस्थिपिंजर (लघुकविता)

लूटकर लोथड़े माँस के पीकर बूॅंद - बूॅंद रक्त डकारकर कतरा - कतरा मज्जाजब जानवर मना रहे होंगे…See More
20 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , ग़ज़ल की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार , आपके पुनः आगमन की प्रतीक्षा में हूँ "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय लक्ष्मण भाई ग़ज़ल की सराहना  के लिए आपका हार्दिक आभार "
yesterday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"धन्यवाद आदरणीय "
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय कपूर साहब नमस्कार आपका शुक्रगुज़ार हूँ आपने वक़्त दिया यथा शीघ्र आवश्यक सुधार करता हूँ…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, बहुत सुन्दर ग़ज़ल है आपकी। इतनी सुंदर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​ग़ज़ल का प्रयास बहुत अच्छा है। कुछ शेर अच्छे लगे। बधई स्वीकार करें।"
Sunday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"सहृदय शुक्रिया ज़र्रा नवाज़ी का आदरणीय धामी सर"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ​आपकी टिप्पणी एवं प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आदरणीय आज़ी तमाम जी, प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service