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चाक है हमारी पृथ्वी

कुम्हार हैं हम
सपनों को दीयों
हंडियों
और गुल्लकों की
शक्ल देते हुए
समय और बाज़ार से बेख़बर
चाक के साथ
घुमाते हैं अपनी ज़रूरतें
नही जानते
कि चाक है हमारी पृथ्वी
और बदलने के लिए
समय और मौसम
पृथ्वी का अपने अक्ष पर
घूमना आवश्यक है......

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Jayprakash Mishra on October 7, 2015 at 8:57pm
Priya Satavinder ji sakaaratmak comment ke liye bahut bahut aabhar
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 7, 2015 at 8:49pm
बधाई आदरणीय jayprakash जी इस सुंदर रचना के लिए
Comment by Jayprakash Mishra on October 7, 2015 at 2:06pm
Adarniya Kanta roy ji daad dene k liye shukriya
Comment by kanta roy on October 7, 2015 at 12:47pm

बहुत कही है चाक की बात। मौसमों के संग घूमती जिंदगी। बधाई आपको आदरणीय जयप्रकाश  जी 

Comment by Jayprakash Mishra on October 6, 2015 at 6:12pm
Sabhi buddhijeeviyo ka swagat hai

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