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लुटा हाला गया मुझ पर...गजल

बहर
1222/1222/1222/1222

अचानक आज ये कैसा ज़ुल्म पहरा गया मुझ पर।
सितम इतने कहा से वो लेकर ढा गया मुझ पर।।

न बारिश है न सावन है हवा का भी नही झोंका।
ये कैसे गम के बादल हैं कहा से छा गया मुझ पर।।

चलो अब चाँद तारों तुम मेरी हालत पे हँस भी लो।
तुम्हे अच्छा स मौका है अमावस आ गया मुझ पर।।

इजाजत दे गए अपने चिरागों घर जलाने की।
जला दो उनकी यादें जो चुभा भाला गया मुझ पर।।

लगे है जख्मकुछ ऐसे दुआ का भी असर न हो।
के वो तफसीसे मोहब्बत चला आरा गया मुझ पर।।

कभी दीपक जलाता था घरों में मैं मुहब्बत के।
उसी का रोष है मालिक लुटा हाला गया मुझ पर।।
मौलिक/अप्रकाशित

©आमोद बिन्दौरी

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Comment by Shyam Narain Verma on September 18, 2015 at 12:30pm
लाजवाब रचना है बहुत बहुत बधाई आपको
Comment by amod shrivastav (bindouri) on September 18, 2015 at 10:45am
उसी का रोष है सायद चढ़ा माला गया मुझ पर।।

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