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हिन्दी गज़ल - अब हृदय में आपका आना मना है ( गिरिराज भंडारी )

2122   2122   2122

आप रो देंगे बहुत संभावना है

अब हृदय में आपका आना मना है

 

अब क्षितिज पर फिर उजाला दिख सकेगा

यों, अँधेरा इस पहर काफी घना है

 

एक घर के दुख में सारा गाँव देखो

इस सिरे से उस सिरे तक अनमना है

 

रक्त से क्या रक्त धोया जा सकेगा ?

ज्यों कहावत कांटों को लेकर बना है

 

आज देही, देह खा जाये न अपना

सोच कर इस देह में उत्तेजना है

 

आप पिघलें तो बहें , रोकें न बहना

कोई ठहरा है , ये उसकी भावना है

 

कर्म का संकेत , कहता है अलग कुछ

वैसे मेरी आपको शुभ कामना है

 

अब अकेला मित्र मुझको छोड़ जाओ

आज मेरा मुझसे ही बस सामना है

**********************************
मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

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Comment

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 12, 2015 at 12:15pm

आ० भाई गिरिराज जी , इस सुन्दर ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by Er Anand Sagar Pandey on August 12, 2015 at 12:02pm
सुन्दर गज़ल पर सादर बधाई आदरणीय गिरिराज जी l

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 11:48am

आदरणीय पाठकों ---

एक ग़लती  होगई है , कहावत स्त्रीलिंग शब्द है , अतः इस शे र को पाठक ग़ण खारिज मानें , ग़ज़ल से हटाना भूल गया हूँ । आगे इसे  गज़ल से हटा दूंगा ।  सादर निवेदन ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 12, 2015 at 11:47am

आदरनीया तनुजा जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका आभार ।

 एक ग़लती  होगई है , कहावत स्त्रीलिंग शब्द है , अतः इस शे र को पाठक ग़ण खारिज मानें , ग़ज़ल से हटाना भूल गया हूँ ।

Comment by Tanuja Upreti on August 12, 2015 at 11:31am

भावना से ओतप्रोत रचना आदरणीय गिरिराज जी 

अब क्षितिज पर फिर उजाला दिख सकेगा

यों, अँधेरा इस पहर काफी घना है  

और 

रक्त से क्या रक्त धोया जा सकेगा ?

ज्यों कहावत कांटों को लेकर बना है 

इन पक्तियों पर विशेष बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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