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गज़ल - फिल बदीह -- हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया ( गिरिराज भंडारी )

122   122   122  12

 

अँधेरों के मित्रो,  हवा दीजिये

मै जलता दिया हूँ बुझा दीजिये

 

लिये आइना सब से मिलता रहा

सभी अब मुझे बद्दुआ दीजिये

 

हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया

हमे जुगनुओं का पता दीजिये

 

पुकारा था हमने उसे बार बार

न कहना उसे फिर सदा दीजिये

 

मेरी बातें कब राज होने लगीं

जिसे आप चाहें बता दीजिये

 

मेरे आबला खुश हुये देख कर

कहूँ क्यूँ ? मै पत्थर हटा दीजिये

 

भुला कर ख़ुदी को मिला सबसे मैं

मुझे आज मुझसे मिला दीजिये  

********************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

 

 

 

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Comment

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Comment by narendrasinh chauhan on June 25, 2015 at 2:52pm

बहुत मिल लिया यारों ग़ैरों से अब  

मुझे आज मुझसे मिला दीजिये , बहोत खूब , सुन्दर गजल रचना


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 1:33pm

आदरणीया कांता जी , उत्साह वर्धन के लिये आपका शुक्रिया ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 25, 2015 at 1:32pm

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपकी स्नेहिल सराहना के लिये आभारी हूँ ॥

Comment by kanta roy on June 25, 2015 at 12:30pm
मुझे आज मुझसे मिला दीजिये ..... क्या गजल हुई है ! बेहद उम्दा शेरों से सजी बहुत सुंदर गजल । बधाई इस सृजन के लिए आदरणीय गिरीराज भंडारी जी ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 25, 2015 at 11:01am

हमारा यक़ीं चाँद से उठ गया

हमे जुगनुओं का पता दीजिये----------शुभान अल्लाह , कमाल है  अनुज.

 

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