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काम का आदमी ( लघुकथा )

" मंजू के यहाँ आज बडी़ वाली एल ई डी भी आ गई । पिछले ही महिने उसने गाड़ी भी ली थी । और एक आप है ...!!!"
" मै क्या ....? क्या कहना चाहती हो तुम ?"
वहीं पास के विडियो गेम में लगे बेटे ने भी कंधे को उचका कर पिता की ओर देख फिर अपने गेम में व्यस्त हो गया ।
" मै क्या कहूँगी भला आपसे .! आपकी ही आॅफिस का बाबू है वो ..और आप अधिकारी होकर भी किसी काम के नहीं ..! "
" किसी काम का नहीं मै ....? "- मन में रह - रह कर एक ही बात अब घुम रही थी कि वे क्या किसी काम के नहीं है सच में ..? कल आॅफिस की लाॅबी में भी ठेकेदार के मुंह से परोक्ष में सुना था कि ये किसी काम के नहीं !
अगले ही दिन आॅफिस में ठेकेदार की अपूर्ण फाईल को पूर्ण करने के प्रयास में वे जी जान से लग गये थे ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

Views: 608

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Comment by Shyam Narain Verma on June 17, 2015 at 4:26pm
बहुत-बहुत बधाई इस शानदार लघु कथा के लिए
Comment by Dr. Vijai Shanker on June 17, 2015 at 4:12pm

पता नहीं हम कब तक एक संक्रमण-कालीन जीवन जीते रहेंगे और आपस में जीवन जीने के मानक तय करते रहेंगे.
एक बहुत सुन्दर अर्थपूर्ण प्रस्तुति, आदरणीय सुश्री कान्ता रॉय जी, बधाई, सादर।

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