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मैं इन्सान हु इंसानियत भूल गया ,

मैं इंसान हू ,
इंसानियत भूल गया ,
मानवता से कुछ लेना देना नहीं .
वो हमसे कोशो दूर गया ,
आपकी नजर में ,
मानवता के लिए जो हम लड़ते हैं ,
हम अपने फायदा के काम करते हैं ,
जगह जगह पोस्टर लगवाता हू ,
काम से ज्यादा अपना नाम चमकाता हू ,
मैं खुद को इतना बुलंद करना चाहता हू ,
की सामने वाला भींगी बिल्ली लगे ,
मैं इंसान हू ,
इंसानियत भूल गया ,
कोई सड़क पर मर रहा हैं .
पानी के लिए तरस रहा है,
मैं मानवता का पक्षधर हू ,
सरकार ने लाल बती दिए ,
साथ में चलते हैं कभी कभी पाईलट ,
वही लोग उठाकर उसे फेक दिए ,
मगर एक चुल्लू पानी नहीं दिए ,
पानी के बिना वो इंसान मर गया ,
मैं इंसान हू ,
इंसानियत भूल गया ,
मानवता का आज सरताज बना हू , ,
लोगो का विश्वास बना हू ,
उन्ही का हिमायती हू मैं ,
जो अक्सर रोटी को तरसते हैं ,
उन्ही के रोटिओ के वास्ते ,
हमारे पास नोट बरसते हैं ,
मैं तो मालामाल हुआ ,
वो एक बेचारा बन गया ,
मैं इंसान हू ,
इंसानियत भूल गया ,

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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 10, 2010 at 8:10pm
गुरु जी अब तो लग रहा है मानवता , इंसानियत जैसे शब्द केवल शब्द कोष की शोभा बन के रह जायेगे, इंसानी मूल्‍यो मे आ रही कमी को आप ने बहुत ही अच्छे तरीके से लिखा है, बहुत खूबसूरत रचना , धन्यबाद ,
Comment by satish mapatpuri on June 10, 2010 at 3:01pm
कोई सड़क पर मर रहा हैं .
पानी के लिए तरस रहा है,
मैं मानवता का पक्षधर हू ,
सरकार ने लाल बती दिए ,
साथ में चलते हैं कभी कभी पाईलट ,
वही लोग उठाकर उसे फेक दिए ,
मगर एक चुल्लू पानी नहीं दिए ,
पानी के बिना वो इंसान मर गया ,
मैं इंसान हू ,
आपका यह ख्याल दिल को छू गया गुरूजी

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