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" ज़रा इसको सिल कर बढ़िया पॉलिश कर देना "।
उसने सर हिला कर जूता ले लिया और साहब ने बड़े अनमने मन से वहाँ रखी टूटी चप्पल पैर में डाल ली ।
" लीजिये साहब , जूता ठीक हो गया ", पर उन्होंने जैसे ही पैर निकाला , मोज़ा चप्पल में लगी कील में फंस गया।
" कैसी चप्पल रखते हो तुम लोग ", नाराज़गी दिखाते हुए उन्होंने उसके बताये पैसों का आधा दिया और चल दिए।
वो अपनी टूटी चप्पल की कील दुरुस्त करते हुए सोच रहा था कि छेद मोज़े में हुआ था या नीयत में।
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on May 30, 2015 at 12:02am

बहुत बहुत आभार आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 29, 2015 at 11:30pm

बढ़िया लघुकथा 

हार्दिक बधाई 

Comment by विनय कुमार on May 29, 2015 at 3:36pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय कृष्ण मोहन जान गोरखपुरी जी..

Comment by विनय कुमार on May 29, 2015 at 3:35pm

बहुत अच्छा लगा आप भी यहाँ शामिल हो गयीं आदरणीया रीता गुप्ता जी | बहुत बहुत आभार.

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 29, 2015 at 3:09pm

वाह! शानदार भाई!हार्दिक बधाई

Comment by Rita Gupta on May 29, 2015 at 1:13pm

नीयत  में छेद, बढ़िया . 

Comment by विनय कुमार on May 29, 2015 at 12:47pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय केवल प्रसाद जी..

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 29, 2015 at 10:56am

ढेरों बधाई स्वीकारें, आ0 विनय भाई जी.

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