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भविष्य (लघुकथा)

"बेटा जी आज दूरबीन से इतनी देर से आसमान में क्या ढूंढ रहे हो।"
"पापा जिस तेजी से प्रदूषण फैल रहा है, जल्दी ही पृथ्वी पर प्रलय आ सकती है। इसलिए मैं यह देख रही थी कि क्या कोई और ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है जहाँ हम भविष्य में रह सके।"

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 17, 2015 at 7:50pm

आ० नेहा जी

बहुत सामयिक रचना . आपको बधाई .

Comment by neha agarwal on April 17, 2015 at 6:48pm
धन्यवाद सुधीर जी
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2015 at 6:45pm

आ0 नेहा जी,  आपने कल्पना को भी मात दे दिया.  बधाई  स्वीकार करे.   सादर,

Comment by neha agarwal on April 17, 2015 at 6:41pm
धन्यवाद आदरणीय पंकज जोशी जी
Comment by Sudhir Dwivedi on April 17, 2015 at 4:11pm

बहुत बधाई नेहा जी !!!

Comment by Pankaj Joshi on April 17, 2015 at 1:11pm

सुंदर कथा , नेहा जी बधाई आपको 

Comment by neha agarwal on April 17, 2015 at 12:33pm
धन्यवाद आदरणीय योगराज गुरु देव जी।

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 17, 2015 at 12:26pm

सोशल मीडिया पर आपको काफी समय से पढता आ रहा हूँ। ओबीओ पर आपकी लघुकथा देखकर बहुत प्रसन्नता हुई। एक बेहद नवीन विषय को लेकर सार्थक और सारगर्भित लघुकथा रची है नेहा अग्रवाल जी,  इस कसी हुई प्रस्तुति हेतु मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।

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