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मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं

मौसम नेअभी जलवे दिखलाने हज़ारों हैं
साहिल से अभी तूफां टकराने हज़ारों हैं

इस उम्र में भी मरता है तुमपे कोई मुझसा
कहते थे कभी हमसे दीवाने हज़ारों हैं

मैंने हैं सजा रक्खे सब दिल में करीने से
जो ग़म के दिये तुमने नज़राने हज़ारों हैं

इस शहर मे भी तेरे हमदर्द तो हैं अपने
अपने तो हैं कम लेकिन बेगाने हज़ारों हैं

कितने हैं हक़ीकत में दुनिया में सखी हातिम 
कहने को सखा़वत के अफ़साने हज़ारों हैं

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Samar kabeer on April 10, 2015 at 10:30am
जनाब "चंदन" जी,आदाब,"शह्रयार" साहिब की ज़मीन में अच्छा प्रयास किया है,बधाई स्वीकार करें |

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