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मेरी पहली कोशिश

जिंदगी की कहानी सुनाता रहा

दर्द दिल के सभी मै छिपाता रहा

प्यार था या नहीं ये पता ही नहीं

बात क्या थी जिगर में दबाता रहा

जज़्ब होते रहे अश्क भीगे अधर

मुसकुरा कर  निगाहें चुराता रहा

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

मुफलिसी में नहीं जो हुये हमसफर

हर कमाई उन्ही पर लुटाता रहा

जीतकर जो मुझे हारता ही रहा   

हारकर भी उसे मैं जिताता रहा

तू बताना “निधी”मैं गलत तो नहीं

मर्म मेरा मुझे क्यों सताता रहा 

निधि  

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Comment

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Comment by Hari Prakash Dubey on March 12, 2015 at 3:56pm

आदरणीया निधि जी ,बहुत ही सुन्दर प्रयास है ,ओ बी ओ मंच पर स्वागत है आपका , आपकी इस प्रथम रचना पर बहुत बहुत बधाई आपको , बाकी इस विधा के जानकार तकनीकी पक्ष को उजागर कर ही देंगे ! सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 12, 2015 at 3:52pm

क्या बात है हर एक शेर सुन्दर है!क्या तरन्नुम में लिखा है आपने!बहुत बहुत बधाईयाँ!!

तोड़कर वो चली पारसा दिल मेरा

आइना कांच में मैं बनाता रहा

चली की जगह चला होना चाहिए था..आपके नाम के अनुसार तो!

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