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ले लो एक सलाम(अतुकांत कविता)

ले लो एक सलाम

आने को फागुन,
है सुन रही गुनगुन,

किसकी अहो,किसकी कहो?

हटा घूँघट अब कली-कली का,

कौन रहा यह मुखड़े बाँच?

कलियों से अठखेली करता,

नाच रहा है घूर्णन नाच ?

हुआ व्यग्र,पहचान नहीं कि

कौन कली खुशबू की प्याली,

कौन रूप की होगी थाली,

खिलखिलाकर खिलने देता,

रूप-वयस को मिलने देता,

देता कुछ सपने उधार,

कलियाँ कहतीं रूप उघाड़---

आज तो अब जा रहा,

हम आज के कल हैं,

अबल कब?सबल हैं,

रूप-रस-गंध संचित प्रबल हैं,

फूल होती हैं हमीं,

पर कभी जो बन पड़ा तो,

रूप अपना ही सहेजे,

सोचे बिना अंजाम कल का,

अडिग-सी आगे बढ़ती हैं,

देवों के शीश से जननी के

पाँव तक चढ़तीं हैं,

आज तू पढ़ता रहा,

हम कल तक पढ़ती हैं,

नाम भिन्न-भिन्न सबके,

चम्पा-चमेली,अलबेली हैं,

अपनी जहाँ, नहीं कहाँ कह,

समझ मत अकेली हैं।

मन के भावों को पढ़ता-गुनता,

          गुनगुन करता,तेरी धुन सुनता,

          भरता ऊँची-सी कुलांच,फिर

अथ श्री भ्रमरोवाच :
"रूप(फूल) वही रहता,
बदलता बस नाम,
अपुन को तो खुशबू
कशिश से है काम!
फूलों को तो मधुकर
देता-फिरता सलाम,
ले लो एक सलाम ।
ले लो एक सलाम ।
भूलता न भ्रमर चाहे 
फूल बदलें कितने ही नाम,
नाम-अनाम की फ़िक्र कहाँ,

करता निशा भर फूलों-घर विश्राम,

जागृति के गीत बोकर,

किसी के हित किसीका होकर,

चलत लिए सपन उद्दाम,
गूँजता है दिशा-दिशा
गुन-गुन,गुनगुन का पयाम,

बलिहारी है रूप की,

आती जो बलिदानों के काम,

खुशबू धन्य वही होती,

अंत काल जाती बिखर,

जननी के हित सब तजकर,

महिमा उसकी कितनी प्रखर!

 चलता जग में उसका नाम।

ले लो एक सलाम।
ले लो एक सलाम।

"मौलिक व अप्रकाशित"

@मनन

 

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Comment by Hari Prakash Dubey on February 8, 2015 at 6:48pm

आदरणीय मनन जी सुन्दर प्रयास  पर हार्दिक बधाई आपको , कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी है , देख लीजियेगा ! सादर 

कृपया ध्यान दे...

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