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"उतारो कपड़े इसके , देखो किस तरफ का है " , भीड़ चिल्ला रही थी और वो थर थर काँप रहा था | शहर में अचानक दंगा भड़क उठा था और वो भाग रहा था कि किसी तरह अपने घर पहुँच जाए | लेकिन जैसे ही एक मोहल्ले में घुसा , सामने से आ रही भीड़ ने उसे घेर लिया |
अभी वो कपड़ा उतारने ही जा रहा था कि पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज आई और भीड़ भाग खड़ी हुई | अब वो पुलिस की जीप में बैठा सोच रहा था कि आज वो तो नंगा होने से बच गया , लेकिन इंसानियत नंगी हो गयी |

.

मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by kanta roy on January 21, 2015 at 1:27pm
आ. विनय कुमार जी , दंगेके परिदृश्य को बेहद खूबसूरती से उकेरा है आपने । इंसान के नंगे होने से बचना और इंसानियत का नंगा होना ,बहुत ही बडी़ बात है । आभार
Comment by विनय कुमार on January 21, 2015 at 12:12pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी..

Comment by Shyam Narain Verma on January 21, 2015 at 11:29am
सुन्दर लघु कथा के लिये बधाई ।

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