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उनका अभिनंदन है जो कुछ कर गुजरते हैं - सुलभ अग्निहोत्री

उनका अभिनंदन है जो कुछ कर गुजरते हैं ।
भाग्य की प्राण-प्रतिष्ठा के हवन में भी
कर्म ही यजमान बनकर होम करते हैं ।

मेरे शब्दों को अभी स्वर की तमन्ना है,
फड़फड़ाते पंख को आकाश बनना है,
वेदना के गर्भ में संकल्प पलता है
हर अमा को चीर कर सूरज निकलता है
आश्वासन आस से परिहास मत करना
आँसुओं से अन्ततः अंगार झरते हैं ।

चेतना की बाँसुरी को स्नेह की सरगम,
भावना को दे नये उद्गम, नये संगम,
ओस बन अन्तःकरण के कुसुम को धो दे
बीज प्राणों में नये उत्साह के बो दे
दोस्त बन संवेदना संजीवनी जिससे
रूह तक पैठे हुये नासूर भरते हैं ।

शक्ति सत्ता में सहज सद्भावना भर दें,
रुँधे कण्ठों को जो बल दे, शब्द दे, स्वर दें,
वे सहज मन की गली में घर बना लेते
सृष्टि के इतिहास को धड़कन नई देते
पत्थरों पर नाम खुदवाने नहीं जाते
जो खरे मन की कसौटी पर उतरते हैं ।

- सुलभ अग्निहोत्री

मौलिक तथा अप्रकाशित

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 4, 2014 at 9:32am

इस सुंदर सार्थक प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई , आपको आदरणीय सुलभ जी

Comment by savitamishra on October 3, 2014 at 1:40pm

खूबसूरत

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