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‘ अकड़न ’  

*********

जहाँ कहीं भी अकड़न है

समझ लेने दीजिये उसे

अगर वो ये सोचती है कि, दुनिया है , तो वो है

तो ये बात सही भी हो सकती है

और अगर वो ये सोचती है कि , वो है, इसलिए दुनिया है

तो फिर उसे देखना चाहिए पीछे मुड़कर

कि, कोई भी नहीं बचा है , ऐसी सोच रखने वालों में से

और दुनिया आज भी है ,

वैसे तो तुम्हारा होना बस तुम्हारा होना ही है , इससे ज्यादा कुछ नहीं

बस एक घटना घटी और तुम हो गए

एक और घटेगी , तुम नहीं रहोगे 

तो पियो सरलता

आने दो तरलता , और बह जाने दो

फैल जाने दो ,

ता कि , दुनिया की पूरी सतह हो जाए आच्छादित

क्यों कि सरलता और तरलता ही फ़ैल सकती है, असीम

और हो जाने दो सार्थक

अपने होने की उस एक नगण्य घटना को ||

*****************************************

मौलिक एवँ अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 17, 2014 at 5:08pm

प्रस्तुत कविता की सार्थकता तथा इसकी व्यापकता को मैं हार्दिक रूप से स्वीकार करता हूँ,  आदरणीय गिरिराज भाईजी. 

हार्दिक बधाइयाँ, आदरणीय.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 17, 2014 at 4:26pm

आदरणीय आशुतोष भाई , रचना की सराहना के लिए आपका तहे दिल से शुक्रिया |

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 17, 2014 at 3:06pm

आदरणीय भाईसाब कमाल की रचना है ..मैं आपके तर्कों से भली भाति सहमत हूँ ..सार्थक रचना के लिए ढेरों बधाई सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:47am

आदरणीय राम शिरोमणि भाई , आपका आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:46am

आदरणीया सविता जी , आपका बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:46am

आदरणीया प्राची जी , आपके अनुमोदन ने रचना कर्म सार्थक कर दिया , आपका हार्दिक आभार | के को की कर लूंगा , आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:44am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , सराहना के लिए आपका शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:43am

आदरणीय बड़े भाई गोपाल जी , आपका बहुत बहुत आभार |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:42am

आदरणीया मीना जी आपका बहुत शुक्रिया |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 16, 2014 at 10:42am

आदरणीय विजय शंकर भाई , रचना के अनुमोदन के लिए आपका हार्दिक आभार |

कृपया ध्यान दे...

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