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वर्तमान की उम्मीद (अतुकान्त) // -सौरभ

आज सुबह-सुबह दरवाजे पर दस्तक हुई.
रोज की तरह.. 

वर्तमान ही होगा..  
विगत के द्वार से आया
दुरदुराया गया हुआ.. / फिर से.

एक विगत के द्वार ही तो जाता है ये..
कुछ नहीं मिलने का कोई ठोस कारण भी तो नहीं इसके पास
कि, बावला / फिर कभी / उसके द्वार न जाता.
वर्ना, भविष्य ने कभी खोले ही कहाँ हैं द्वार ? किसी के लिए ? 
बड़ा सूम रहा है वो एक शुरु से..

निर्मोही !


आखिर जरुरत ही क्यों

किसीको किसीके द्वार जाने की ?
लेकिन कहते हैं न.. 

रात भर खुली आँखों बनती-सँवरती आशाओं की सूरत / घनीभूत हो
इतनी बलवती हो जाये कि देह की पोर-पोर बरसने लगे
तो पूरी देह पौ फटते न फटते ऐँठने लगती है
रुका नहीं जाता फिर एकदम से !

अतृप्ति की इसी पूर्णता को जीता है वर्तमान !

फिर,

विगत ने ही / कई-कई बार
क्या नहीं चटाया है इसे..  !
उन्हीं कुछ चटनियों की उम्मीद लिये आज तक ये..  ओऽऽऽऽह ! ..

और बस,

पौ फटते न फटते

कदम अनमनाये बढ़ जाते हैं.

जब कभी धूप दौड़ती नहीं, फिरती नहीं, कुछ करती नहीं
तो मौका पाते ही चिलचिलाने लगती है.
वर्तमान की धूप भी रात भर जज्ब रहती है
बिस्तर पर गुड़मुड़ी पड़ी हुई
सो रह-रह कर चिलचिलाने लगती है
और वर्तमान बार-बार तिलमिला जाता है.

एष्णाओं की धूप से जब सर्वज्ञाता ऋषि-मुनि नहीं बच पाये,
जो जीते जी निर्विकार, अक्रिय, विचित्र मान लिये गये थे ..
फिर ये बेचारा तो एष्णाओं को ही जीने को अभिशप्त है, पूरी सक्रियता के साथ !
वर्तमान है न ! ..

इसे हर हाल में जीना है .. 

और, बिना उम्मीद जीना भी कोई जीना है क्या ?

यही कहने आया है मुझसे शायद, कि, मिला.. कि, नहीं मिला..
दस्तक हुई है आज फिर मेरे दरवाजे..

और मैं.. / धुर विपन्न, चिरकाल से..

वर्तमान की सुन लेता हूँ,

जाता क्या है !

 
************
-सौरभ
************
(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:24am

रचना को समय व मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, भाई बृजेशजी.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:23am

आदरणीय गिरिराजभाईजी, आपकी संवेदना ने मुझे संबल दिया है.
सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:23am

आदरणीय सुशील सरनाजी, सादर धन्यवाद


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:23am

सादर धन्यवाद, आदरणीय गोपाल नारायनजी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:23am

आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, आपका सादर आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:23am

सादर धन्यवाद, आदरणीय विजय प्रकाशजी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:22am

आदरणीय सत्यनारायणजी, आपने जिस सहजता लेकिन सधे हुए स्वर में इस प्रस्तुति के मर्म को ही प्रस्तुत कर दिया है, इस रचना के लिए भी सौभाग्य की बात है.
सादर धन्यवाद आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:22am

आदरणीया राजेश कुमारीजी, आपका सादर आभार


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 2, 2014 at 2:22am

आदरणीय विजय प्रकाशजी, आपका अनुमोदन मिला, सादर धन्यवाद

Comment by coontee mukerji on July 1, 2014 at 10:02pm

सौरभ जी आपकी लेखनी के सभी कायल है.......शायद विगत की पीड़ा को वर्तमान में कुछ इज़ाद मिल जाय. हम पीड़ा को निमंत्रण जब तक देते रहेंगे....हमारा वर्तमान अभिशप्त होता जाएग....ईसा मशी सूली पर चढ़ने से पहले कहा था.....प्रभू उन्हें माफ कर दो, उन्हें पता नहीं वे क्या कर रहे हैं.....गूढतम अर्थ लिये एवं वक्र अलंकार से सजे आपकी रचना उत्कृष है....आपको अनेक साधुवाद. सादर.

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