For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा सलिला: देख दुर्दशा देश की संजीव 'सलिल'

दोहा सलिला: 

 

देख दुर्दशा देश की

 

संजीव 'सलिल'
*
देख दुर्दशा देश की, चले गये जो दूर.
उनसे केवल यह कहूँ, आँखें रहते सूर..

देश छोड़ वे भी गये, जिन्हें प्रगति की चाह.
वाह मिली उनको बहुत, फिर भी भरते आह..

वसुधा जिन्हें कुटुंब है, दुनिया जिनका नीड़.
वे ही मानव रत्न हैं, बाकी केवल भीड़..

बसे देश में जो 'सलिल', चाह रहे बदलाव.
सच्चे मानव हैं वही, जो तजते अलगाव..

सिर्फ देश को कोसते, करते नहीं सुधार.
उन कापुरुषों की करें, चर्चा क्यों बेकार?

जो कमियों को खोजकर, चाहें कर लें दूर.
ऐसों का संग दीजिये, कहीं रहें भरपूर..

नहीं यहाँ सब कुछ बुरा, नहीं वहाँ सब श्रेष्ठ.
श्रेष्ठ यहाँ भी है बहुत, बहुत वहाँ है नेष्ट..

धूप-छाँव, सुख-दुःख सदृश, भले-बुरे का मेल.
है दुनिया में सब जगह, हार-जीत का खेल..

दर्शन मत कर दूर से, तनिक निकट आ मीत.
माटी को चंदन समझ, तभी बढ़ेगी प्रीत..

गर्व न करना दृष्टि पर, देखे आधा सत्य.
जिसे न देखे कह रही, उसको व्यर्थ असत्य..

देश गर्त में देखकर मिलती जिसको शांति.
वह केवल दिग्भ्रमित है, मन में पले भ्रान्ति..

जैसा भी है देश यह, है मेरा भगवान.
इसकी खातिर जी-मरूँ, शेष यही अरमान..

त्रुटियों की चर्चा करूँ, लेकर मन में आस.
बेहतर से बेहतर बने, देश- यही अहसास..

******************

Views: 300

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 27, 2011 at 7:53am

bgee ji!

 

gungrhakata ko naman.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 26, 2011 at 12:30pm

देश छोड़ वे भी गये, जिन्हें प्रगति की चाह.
वाह मिली उनको बहुत, फिर भी भरते आह..... भारतीय जो अपनी मिटटी से दूर है उनके दर्द को बयान करता दोहा ,

 

जो कमियों को खोजकर, चाहें कर लें दूर.
ऐसों का संग दीजिये, कहीं रहें भरपूर.... शिक्षापरक दोहा ,

 

त्रुटियों की चर्चा करूँ, लेकर मन में आस.
बेहतर से बेहतर बने, देश- यही अहसास..  हर भारतीय के मन की बात

 

सभी दोहें एक से बढ़कर एक , बधाई आचार्य जी , इस सुंदर छंद के लिये |

Comment by sanjiv verma 'salil' on February 24, 2011 at 8:32pm
dhanyavad.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted discussions
1 hour ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 161

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  …See More
1 hour ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"रिश्तों की महत्ता और उनकी मुलामियत पर सुन्दर दोहे प्रस्तुत हुए हैं, आदरणीय सुशील सरना…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक - गुण
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, बहुत खूब, बहुत खूब ! सार्थक दोहे हुए हैं, जिनका शाब्दिक विन्यास दोहों के…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
12 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
19 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service