For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

लघुकथा - यह भी जीवन है

पत्नी जिस बस से आ रही थीं, उसे घर के पास से ही होकर गुजरना था. रात का समय था. हल्की ठण्ड थी. मैंने हाफ़ स्वेटर पहना और टहलता हुआ उस मोड़ तक पहुँच गया, जहाँ पत्नी को उतरना था. बस के वहाँ पहुँचने में अभी कुछ समय शेष था. ठंडी हवा शरीर में सिहरन पैदा कर रही थी इसलिए उससे बचने की खातिर मैं फुटपाथ के किनारे बनी दुकान के चबूतरे पर जा बैठा.

कुछ लोग वहीँ जमीन पर सो रहे थे. पास का व्यक्ति चादर ओढे, अभी जग रहा था.

मैंने उत्सुकता वश पूछा 'भैया, यहीं रोज सोते हो?’

'हाँ', वह बोला.

‘जाड़े में क्या करते हो?’

‘यहीं लेटता हूँ.’

‘और बरसात में?’

‘यहीं’

‘भीगते नहीं? यहाँ तो पानी आता होगा?’

‘किनारे हो जाता हूँ या बैठ जाता हूँ.’

‘ओह! तब तो दिन में काम पर भी असर पड़ता होगा. क्या करते हो?’

‘कुछ नहीं.’

यह सुनकर मैं अचकचा गया. ऐसे उत्तर की मैंने अपेक्षा नहीं की थी.

‘तो फिर खाते क्या हो?’ मैंने उत्सुकतावश पूछा.

‘मैं न चोरी करता हूँ, न भीख माँगता हूँ और न काम करता हूँ. पास में जंगल है. वहाँ से गांजे की पत्तियाँ तोड़ लाता हूँ. खुद भी पीता हूँ औरों को भी पिलाता हूँ. उन्हीं से पैसे मिल जाते हैं.’ उसने निरपेक्ष भाव से उत्तर दिया.

मैं चुप हो गया.

आज भी सोच रहा हूँ कि ये खुश होने की बात है या दुखी?

.

-  बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित) 

Views: 642

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on March 10, 2014 at 7:11pm

आदरणीया वंदना जी आपका बहुत आभार!

Comment by Vindu Babu on March 8, 2014 at 3:45am

मुझे इसमें खुश होने वाली तो कोई बात नहीं समझ आयी आदरणीय.

ईश्वर सदबुद्धि दे ऐसे लोगों को,जीवन जीना सिखाये...बस और क्या कहूँ!

आपने इस इस पहलू को छुआ...उसपर प्रकाश डाला ये जरुर अच्छा लगा।

सादर

Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2014 at 8:54pm

आदरणीय मनोज जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2014 at 8:54pm

आदरणीय प्रदीप जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by मनोज कुमार सिंह 'मयंक' on March 5, 2014 at 8:50pm

आदरणीय सौरभ जी के प्रतिक्रिया पर आपकी प्रतिक्रिया का पीछा करते हुए यहाँ आना हुआ..पहले आदरणीय सौरभ सर कि प्रतिक्रिया पढ़ी फिर आपकी कहानी..मुझे आपकी कहानी एक गद्यांश सी और सौरभ सर कि प्रतिक्रिया ससंदर्भ व्याख्या प्रतीत हुई..दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं..वाह भई वाह 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 5, 2014 at 8:47pm

मैं न चोरी करता हूँ, न भीख माँगता हूँ और न काम करता हूँ.

मैं चुप हो गया.

सादर बधाई आदरणीय 

Comment by बृजेश नीरज on March 5, 2014 at 8:34pm

आदरणीय सौरभ जी, आपके कहे ने एक नई दृष्टि दी मुझे! आपका हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 5, 2014 at 1:26am

समय-समय की बात है.

वीरगाथाकाल में होता तो यही व्यक्ति अपने मन का राजा कहलाता. वर्तमान से निर्लिप्त-सा, अपनी आन पर जीता हुआ समझा जाता. समाज इसकी सारी आवश्कतायें पूरी करता. और ये अपनी चाह पर उन्हें स्वीकारता या न स्वीकारता. 

भक्तिकाल में होता तो यही व्यक्ति पूज्य होता. मलूकदास के स्वर में अजगर-पंछी करता हुआ पूर्ण ब्रह्म की अतुलनीय क्षमता बखानता हुआ देखा जाता ! और मान पाता रहता. निर्मोहपन, निस्पृहता या निर्ममता का जीता जागता स्वरूप ! आजतक अनुकरणीय कहलाता.

रीतिकाल में होता तो यही व्यक्ति परमप्रेमी कहलाता. अपनी धुन में मस्त ! आज कहानी बना, लीक छोड़ कर जीते हुए तार्किक युवाओं के लिए अनुकरणीय होता.

आधुनिक गद्यकाल में ही सारी विवशता लिए बेचारा जी रहा है..

:-)))

शुभ-शुभ

Comment by बृजेश नीरज on February 27, 2014 at 10:32pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी यही संकट मेरे सामने भी है!

Comment by Shubhranshu Pandey on February 27, 2014 at 8:48pm

आदरणीय बृजेश जी,

फ़क्कड़पन की इन्तेहा हो गयी. अब इस बेपरवाही को क्या कहा जाये? उसके इस जबाब को अच्छा कहा जाये या खराब ये भी समझ में नहीं आ रहा है,,

सादर.

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर, मैं इस क़ाबिल तो नहीं... ये आपकी ज़र्रा नवाज़ी है। सादर। "
3 hours ago
Sushil Sarna commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय जी  इस दिलकश ग़ज़ल के लिए दिल से मुबारकबाद सर"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया और सुझाव  का दिल से आभार । प्रयास रहेगा पालना…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार । भविष्य के लिए  अवगत…"
3 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आदरणीय  अशोक रक्ताले जी सृजन को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार । बहुत सुन्दर सुझाव…"
3 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. शिज्जू भाई,एक लम्बे अंतराल के बाद आपकी ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ..बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है.मैं देखता हूँ तुझे…"
6 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . लक्ष्य

दोहा सप्तक. . . . . लक्ष्यकैसे क्यों को  छोड़  कर, करते रहो  प्रयास । लक्ष्य  भेद  का मंत्र है, मन …See More
8 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Saurabh Pandey's discussion पटल पर सदस्य-विशेष का भाषायी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय
"आदरणीय योगराज जी, ओबीओ के प्रधान संपादक हैं और हम सब के सम्माननीय और आदरणीय हैं। उन्होंने जो भी…"
8 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय अमीरुद्दीन साहब, आपने जो सुझाव बताए हैं वे वस्तुतः गजल को लेकर आपकी समृद्ध समझ और आपके…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . . उमर
"आदरणीय सुशील भाई , दोहों के लिए आपको हार्दिक बधाई , आदरणीय सौरभ भाई जी की सलाहों कर ध्यान…"
9 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा से समृद्ध हुआ । "
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service