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नवगीत : पड़े रहेंगे बंद कहीं पर शादी के गहने

घूमूँगा बस प्यार तुम्हारा

तन मन पर पहने

पड़े रहेंगे बंद कहीं पर

शादी के गहने

 

चिल्लाते हैं गाजे बाजे

चीख रहे हैं बम

जेनरेटर करता है बक बक

नाच रही है रम

 

गली मुहल्ले मजबूरी में

लगे शोर सहने

 

सब को खुश रखने की खातिर

नींद चैन त्यागे

देहरी, आँगन, छत, कमरे सब

लगातार जागे

 

कौन रुकेगा दो दिन इनसे

सुख दुख की कहने

 

शालिग्राम जी सर पर बैठे

पैरों पड़ी महावर

दोनों ही उत्सव की शोभा

फिर क्यूँ इतना अंतर

 

मैं खुश हूँ, यूँ ही आँखो से

दर्द लगा बहने

--------

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 9, 2014 at 12:03am

बहुत बहुत शुक्रिया आशीष नैथानी 'सलिल' जी

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on February 8, 2014 at 11:58pm

कौन रुकेगा दो दिन इनसे

सुख दुख की कहने |

वाह सुन्दर गीत भाई धर्मेन्द्र जी |

  

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:05pm

बहुत बहुत शुक्रिया रमेश कुमार चौहान साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:03pm

बहुत बहुत धन्यवाद  बृजेश नीरज जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:02pm

बहुत बहुत शुक्रिया rajesh kumari जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 8:01pm

बहुत बहुत शुक्रिया coontee mukerji जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 7:59pm

बहुत बहुत शुक्रिया गिरिराज भंडारी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 7:59pm

आभारी हूँ अनिल कुमार 'अलीन' साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 7:58pm

बहुत बहुत शुक्रिया  annapurna bajpai जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on February 7, 2014 at 7:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कल्पना रामानी जी

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