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१.      “ मैं ”

 

मैं-मैं तू करके हुआ, भौतिक सुख में लीन

अहम् भाव और देह की, रहा बजाता बीन

रहा बजाता बीन , नहीं  ‘मैं’ को पहचाना  

परम तत्व को  भूल ,जोड़ता रहा खजाना    

क्या  दिखलाकर दाँत,  करेगा केवल हैं हैं ?

जब पूछें यमराज, कहाँ बतला  तेरा  मैं ||

 

२.      “ तुम “

 

तुम-मैं मैं-तुम एक है , परम ब्रम्ह का अंश  

जाति- धर्म  इसका नहीं , और न कोई वंश

और न कोई वंश ,यही तो अजर - अमर है

अविनाशी  है  रूह , और  काया  नश्वर है

कर इसका अहसास,ह्रदय में रुमझुम रुमझुम

परम ब्रम्ह का अंश , एक है तुम-मैं मैं-तुम ||

 

३.      “ हम “

 

‘हम’ नन्हा-सा शब्द है,अणु जैसा ही जान

शक्ति कल्पनातीत है,‘हम’ से कौन महान

‘हम’ से कौन महान, एकता का परिचायक

‘हम’ देता सुख शांति, रहा हरदम ‘हम’ नायक  

जीना सब के साथ , नहीं  रहना तन्हा-सा

अणु जैसा ही जान,शब्द है ‘हम’ नन्हा-सा ||

 

 

अरूण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)

 

मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 742

Comment

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Comment by Shyam Narain Verma on January 8, 2014 at 11:51am
बढ़िया रचना पर हार्दिक बधाइयाँ
Comment by Sarita Bhatia on January 8, 2014 at 9:15am

आदरणीय गुरुदेव प्रेरक दार्शनिक प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई 

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