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दो अक्षरो का *शक'

दो हमसफर

एक छत

रहे अजनबी की तरह

लब खुले तो टकरार

ना साँसे टकराती

ना बिन्‍दीयाँ भाती

ना विदाई

ना स्‍वागत

नजर चुराते

बीती राते

कभी

तन मन साथ

हँसी उमंग चाहत प्‍यार

लगी नजर

बने नदी के

दो किनारे

बीच में

शक

केवल शक

बाँट दिया प्‍यार

एक ना सुनते

एक दूजे की बाते

स्‍वाभिमान

विद्रोह

गुस्‍से की

ज्‍वाला जला रही

प्‍यार को

खत्‍म समझ

नदारद सोच

दिल दिमाग

बना पत्‍थर

टकरा लौटती

एक दूजे की बाते

खत्‍म विश्‍वास

अलगाव की चाहत

कल चाहत का घर

आज दिवारो का घेरा

और शक था

बीच का रोडा

जो मिटने को नहीं

तैयार था

क्‍योंकि वह

आज का शक था

आधुनिकता के दौड़ में

बदलते रिश्‍तों

के बीच का

शक था

एक शक

देा अक्षरों से बना

शक

बर्बाद कर रहा था

अखंड पूरे जीवन को

पूरे जीवन को

 

मौलिक व अप्रकाशित अखंड गहमरी की रचना

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Comment by Akhand Gahmari on December 27, 2013 at 10:40pm

आदरणीया डा0 प्राची सिंहं दीदी जी आपको प्रणाम आप मेरी एक रचना आत्‍मंथन पर आयी और अपने विचारो से अवगत करायी उसके बाद मैने यथा संभव प्रयास किया कि सपाट बयान बाजी किसी रचना में ना हो, सफल रहा या नही इसका बात को आप ही बता पायेगी।  आप पुन: मेरी रचना पर आयी और अपने विचार रखा मैं आपका आभारी हूँ, मै प्रयास करूगा कि आपको दुबारा शिकायत का मौका ना मिले आपके मार्गदर्शन का आकांक्षी अखंड गहमरी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 10:03pm

शक दीमक की तरह वास्तव में जीवन को खोखला ही कर देता है.... इस दानव से तो बच कर ही रहना चाहिए 

आ० अखंड गहमरी जी...आपको मंच पर काफी समय हो गया अब, आपसे अतुकांत प्रस्तुतियों में प्रस्तुतीकरण के क्रम में थोडा और मनन-मंथन और शिल्प पर ध्यान देते हुए प्रस्तुतियां देने की अपेक्षा बन गयी है. बाकी प्रस्तुतियों और साथ ही उन पर हुई चर्चाओं को पढ़ते चलें बहुत कुछ स्पष्ट होता जाएगा, अभिव्यक्तियाँ स्वतः ही सधती चलेंगी.

इस प्रस्तुति पर सादर बधाई 

शुभकामनाएं 

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:43pm

शक का कोई इलाज नहीं.....और क्या कहें..इस अभिव्यक्ति के लिये हार्दिक बधाई.

Comment by annapurna bajpai on December 24, 2013 at 5:12pm

शक एक ऐसी बीमारी है जिसका इलाज हकीम लुक़मान के पास भी नहीं था । अच्छे खासे जीवन को बर्बाद करता है ये शक । 

अच्छी रचना , बधाई आपको । 

Comment by Akhand Gahmari on December 23, 2013 at 12:21pm

  

आपके आगमन और उत्‍साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तवak जी सादर नमस्‍कार आपको

Comment by Akhand Gahmari on December 23, 2013 at 12:20pm

आपके आगमन और उत्‍साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीया Meena Pathak जी सादर नमस्‍कार आपको

Comment by Meena Pathak on December 23, 2013 at 11:49am

आधुनिकता के दौड़ में

बदलते रिश्‍तों

के बीच का

शक था

एक शक

देा अक्षरों से बना

शक

बर्बाद कर रहा था

अखंड पूरे जीवन को

पूरे जीवन को........................बहुत सुन्दर , बदलते माहौल में बदलते रिश्तों की सच्चाई बखूबी से बयान की आप ने अपनी रचना के माध्यम से आदरणीय अखंड जी ... बहुत बहुत बधाई आप को इस उत्कृष्ट रचना हेतु | सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 22, 2013 at 7:52pm

शक !  बेशक करता है सर्वनाश i  भावनाओ का स्वागत i

Comment by Akhand Gahmari on December 22, 2013 at 5:14pm

आपके आगमन और उत्‍साहवर्धन के हम सदैव आकांक्षी रहेगें आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सादर नमस्‍कार आपको


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 22, 2013 at 5:11pm

आदरनीय अखंड भाई , बहुत सुन्दर रचना की है / शक सही मे घर को बरबाद कर देता है ॥ आपको अनेकों बधाइयाँ ॥

कृपया ध्यान दे...

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