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!!! चाल ढार्इ घर चले अब !!!

बन फजल हर पल बढ़े चल,
दासता के देश में अब।
रास्ते के श्वेत पत्थर
मील बन कर ताड़ते हैं
दंग करती नीति पथ की,
चाल ढार्इ घर चले अब।1

भूख पीड़ा सर्द रातें
राह पर अब कष्ट पलते
भ्रूण हत्या पाप ही है
राम के बनवास जैसा
साधु पहने श्वेत चोला
चाल ढार्इ घर चले अब।2

रोजगारी खो गर्इ है
रेत बनकर उड़ चुकी जो
फिर बवन्डर घिर रहा है
घूस खोरी सी सुनामी
दर-बदर अस्मत हुर्इ पर
चाल ढार्इ घर चले अब।3

कत्ल का अंजाम क्या है?
बस रर्इसों के सफर सम
तंत्र का यह श्वेत पत्रक
प्रेम का इतिहास कहता
फिर रसायन रस पढ़ा कर
चाल ढार्इ घर चले अब।4

के0पी0सत्यम-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 25, 2013 at 11:09pm

भाई केवल प्रसादजी, यदि इस नवगीत को कथ्य, तथ्य, शिल्प, प्रस्तुति और संप्रेषणीयाता सबके हिसाब से मेरी पढ़ी हुई आपकी अबतक की सर्वश्रेष्ठ रचना कहूँ तो अतिशयोक्ति न होगी.बिम्ब और प्रतीकों का इतना सार्थक प्रयोग आपकी रचनाओं में मेरी दृष्टि में पहली बार हो रहा है.


आपने इस नवगीत में चार बन्द रखे हैं, और चारों के इंगित इतने सान्द्र हैं कि सीधे हृदयतल की तह तक पहुँचते हैं.
आपने तुकान्तता की बाध्यता नहीं रखी है, लेकिन ’फाइलातुन’ की सहज और प्रवहमान आवृति ने अंतर्गेयता की दशा को अति उच्च बनाये रखा है. जो आपकी दिनोदिन समृद्ध होती जा रही काव्य-समझ की अति प्रखर बानग़ी है.
आपके समृद्ध अनुभव से किसी मंच को ऐसी ही रचनाओं की अपेक्षा होगी.

हृदय की अतल गहराइयों से आपको बधाई कह रहा हूँ. ऐसी प्रखर और गंभीर रचना को साझा कराने के लिए सादर धन्यवाद.

हाँ एक बात अवश्य निवेदित करूँगा, कि, आखिरी बन्द में दूसरी पंक्ति को बस रईसों का सफ़र है किया जा सकता है क्या ? वस्तुतः यह कोई सुझाव न हो कर मेरा एक निवेदन भर है.
शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:03pm

आ0 कुन्ती जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 7:01pm

आ0 धामी भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 21, 2013 at 6:58pm

आ0 भण्डारी भाई जी, आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by coontee mukerji on December 20, 2013 at 2:11pm

कत्ल का अंजाम क्या है?
बस रर्इसों के सफर सम
तंत्र का यह श्वेत पत्रक
प्रेम का इतिहास कहता
फिर रसायन रस पढ़ा कर
चाल ढार्इ घर चले अब।...........बहुत सुंदर.केवल जी..हार्दिक बधाई.

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 20, 2013 at 7:37am

आदरनीय केवल भाई सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 19, 2013 at 7:41pm

आदरनीय केवल भाई , खूब सूरत रचना के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ ॥

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 6:26pm

आदरणीय  मीना जी  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 6:25pm

आदरणीय अन्नपूर्णा जी  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आप सभी का हार्दिक आभार। सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on December 19, 2013 at 6:25pm

आदरणीय  श्याम नारायणजी  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आप  का हार्दिक आभार। सादर,

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