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छंद- द्रुतविलंबित

लक्षण -  12 वर्णों के चार चरणों  वाले इस छंद के प्रत्येक चरण में 1 नगण  2 भगण तथा 1 रगण होता है I

 

111    211     211     212

 

प्रकट  है  तटबंध   प्रवाहिका

नयन गोचर है   सरिता नहीं

इक तना लघु था  सहसा  तना

न चरता पशु भी इक पास में I

 

सरित का कुछ गान हुआ नहीं

पवन का कुछ भान हुआ नहीं

विरल जीवन मात्र पिपीलिका

सघन  है  वन  नीरव देश भी I

 

उस तने पर है  सब  जीव  जो

मगन  होकर  वे  सब  पी  रहे

सुरस जो बहता  रिसता  वहां

तनिक भी उनको भय है नहीं I

 

जगत में हम भी सब लींन  यो

विकट पाश  लिए यम है खड़ा

पर  किसे  उसकी परवाह  है

हम धरा पर है  जड़  जीव  से I  

 

  (मौलिक व अप्रकाशित )

 

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Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 1, 2013 at 11:32am

आदरणीया

द्रुत बिलम्बित  के अतुकांत होने की कोई अनिवार्यता नहीं है i मैंने छंदोत्सव में भाग लेने हेतु शीघ्रता में लिखा i दुर्विपाक से मेरी  त्रुटि एवं अज्ञानता के कारण रचना  प्रतिभाग भी नहीं ले पाई i भविष्य  में कभी तुकांत पर भी माँ की  कृपा  चाहूँगा i बस आप  मित्रो  का प्रोत्साहन मिलता रहे i  सादर i

Comment by वेदिका on December 1, 2013 at 8:17am

रचना सरस है और नवीन सीखने को प्रेरित करती हुयी है| आपको हार्दिक बधाई प्रेषित करती हूँ| आदरणीय कुछ प्रश्न है मन मे, छंद द्रुतविलंबित मे अन्य छंदों की भांति तुकांतता नही होती क्या? छंद द्रुतविलंबित पर प्रकाश डालने की कृपा करें! 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:17pm

राजेश म्रदु जी

आपको यीट्स याद आये

यह तो अद्भुत है

मै तो कहूँगा आपका स्नेह है i

बहुत बहुत  आभार  i

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:14pm

अनुपमा जी

आपकी टीप से उत्साह मिला है  i

धन्यवाद

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 29, 2013 at 10:12pm

कुन्ती मुकर्जी

मान्या, आपकी सराहना का धन्यवाद i

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:18pm

बहुत सुंदर रचना.

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:12pm

बेहद सुंदर भावों से ओतप्रोत , सुंदर शिल्प और कथ्य भी बड़ा ही प्रभाव पूर्ण बन पड़ा है , आ0 गोपाल नारायण जी बहुत बधाई आपको । 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 28, 2013 at 7:38pm

प्रस्तुति अच्छी है किन्तु यदि चार पदों में तुकांत के नियमों का पालन हो जाता तो रचना सरस हो जाती

दूसरी ओर छंद के चारों पदों में प्रवाह एक जैसा न जाने क्यूँ नहीं लग रहा

हो सकता है कारण वही हो की इसमें तुकांत की बाध्यता नहीं रखी गयी है जैसा की संस्कृत के छंदों में होता है

किन्तु इस छंदमयी रचना कर्म को सादर प्रणाम

जय हो


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Comment by गिरिराज भंडारी on November 28, 2013 at 5:23pm

आदरणीय बडे भाई गोपाल जी , छंद का मुझे ग्यान नही है , पर पढ कर बहुत अच्छा लगा !!! लाजवाब रचना के लिये आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 28, 2013 at 4:22pm

अति सुंदर प्रस्‍तुति, किंतु श्रद्धेय कुछ अधिक क्लिष्‍ट नहीं हो गया । खैरे अनायास यीट्स याद आ गए, सादर

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