For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सृजन-सृजन (अतुकांत) ...............डॉ० प्राची

शब्द तरंगहीन 
      गहनतम 
      सान्द्रतम 
      और 
      निर्बाध उन्मुक्तता में अवस्थित
      विलगता-विलयन के 
      सुलझे तारों पर स्पंदित
मन का अंतर्गुन्जन... / मदमस्त
जब चुन बैठे कोई स्वप्न 
और 
नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !

(मौलिक और अप्रकाशित) 

Views: 1024

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2013 at 9:04pm

अभिब्यक्ति के भाव व शब्द चयन पर आपकी उदात्त सराहना के लिए आभारी हूँ आदरणीया कुंती मुखर्जी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 2, 2013 at 9:03pm

अभिव्यक्ति पर आपकी उपस्थिति के लिए धन्यवाद प्रिय राम शिरोमणि जी 

Comment by coontee mukerji on November 29, 2013 at 4:32pm

प्राची जी आपकी अतुकांत रचना में ''सृजन-सृजन'' बहुत अच्छा लगा. सारे भावों का निचोड़ आपने इन दो शब्दों में दे दिये है.आप की शब्द रचना कौशल अद्भूत है.साधुवाद.

Comment by ram shiromani pathak on November 29, 2013 at 12:04am

बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीया प्राची जी   ……।हर्दिक बधाई आपको 

Comment by बृजेश नीरज on November 28, 2013 at 9:35pm

आदरणीया प्राची जी, आपने मेरे कहे को मान दिया, इसके लिए आपका आभार!

मेरी टिप्पणी रचना विशेष पर जरूर है परन्तु रचना विशेष के लिए नहीं है. इस रचना के शब्द और भाव समझ ही गया. मैंने टिप्पणी में रचना की प्रशंसा महज औपचारिकता के लिए नहीं की थी.

ये एक प्रश्न है मेरे मन में, आप के विचार इस बिंदु पर जानना चाहता था. आपकी बात सही और उचित है लेकिन इतना जरूर कहना चाहूँगा कि हम अपना कम्फर्ट जोन खुद चुनते हैं.

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 9:05pm

रचना आपको पसंद आयी ..

आपका हार्दिक आभार आ० अन्नपूर्णा बाजपेयी जी 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 9:04pm

आ० संदीप जी 

रचना के भाव व शब्दों का निनाद आपको पसंद आया.. यह जानना हर्षित करता है

सादर धन्यवाद  


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 8:52pm

आ० बृजेश जी,

रचना की गहनता पर आपका अनुमोदन हर्षित करता है... हार्दिक आभार!

//एक प्रश्न बार-बार उठता है- क्या शब्दों की क्लिष्टता आवश्यक है?//..............बृजेश जी शब्द हर रचनाकार अपनी सहज कम्फर्ट ज़ोन के अनुरूप ही लेता है, जो शब्द एक पाठक के लिए बिलकुल सहज होते हैं वही दूसरे के लिए मुश्किल हो सकते हैं.

इस अभिव्यक्ति का कौन सा शब्द इतना क्लिष्ट है...जिसे सरल रूप में लेने की आवश्यकता है यदि स्पष्ट कह पायेंगे तो मुझ अकिंचन पर उपकार होगा...

या फिर  शायद यह हो की अर्थ की गहनता के कारण शब्द प्रति शब्द कथ्य के तारों को पकड़े पकड़े चल पाने में पाठक अर्थ का सिरा छोड़ दे रहे हों? काफी लम्बे वाक्य यदि हों तो ऐसा सामान्यतः हो जाता है.

आपकी पाठकीय प्रतिक्रया का सादर सहर्ष स्वागत है..:)) 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 28, 2013 at 8:28pm

आ० राजेश जी 

मुझे वास्तव में बिलकुल महसूस नहीं हुआ की इस अभिव्यक्ति विशेष में कोइ ऐसा कठिन शब्द प्रयुक्त किया गया हो, जिसका अर्थ कोई पाठक सहजता से न समझ सके...

तथ्य गूढ़ ज़रूर है, लेकिन इतनी सहजता या सरलता से ऐसा गहन भाव कभी व्यक्त हुआ हो इस पर मुझे संशय है..!

//शब्‍दों का अनुरणन कभी-कभी शोर भी पैदा करता है//..............ये शोर  किन शब्दों से हो रहा है वो कठिन शब्द ज़रूर सांझा कीजिये ताकि अर्थ स्पष्ट किया जा सके..

आपकी बेबाक प्रतिक्रया का स्वागत है.

Comment by annapurna bajpai on November 28, 2013 at 8:22pm

नियति 
चरितार्थ करने को हो बाध्य !
तब,
विधि विधान विधाता 
विलयित हो
उन्मुक्त मनःस्पंदन में 
खेलते है  ..सृजन-सृजन !................ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी । 

 बहुत सुंदर भावों के साथ , सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ0 प्राची जी , बधाई आपको इस अप्रतिम रचना के लिए । 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आ. भाई शिज्जू 'शकूर' जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
12 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आदरणीय नीलेश नूर भाई, आपकी प्रस्तुति की रदीफ निराली है. आपने शेरों को खूब निकाला और सँभाला भी है.…"
22 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय posted a blog post

ग़ज़ल (हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है)

हर रोज़ नया चेहरा अपने, चेहरे पे बशर चिपकाता है पहचान छुपा के जीता है, पहचान में फिर भी आता हैदिल…See More
23 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - वो कहे कर के इशारा, सब ग़लत ( गिरिराज भंडारी )
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन।सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . लक्ष्य
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। इस मनमोहक छन्दबद्ध उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
" दतिया - भोपाल किसी मार्ग से आएँ छह घंटे तो लगना ही है. शुभ यात्रा. सादर "
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"पानी भी अब प्यास से, बन बैठा अनजान।आज गले में फंस गया, जैसे रेगिस्तान।।......वाह ! वाह ! सच है…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"सादा शीतल जल पियें, लिम्का कोला छोड़। गर्मी का कुछ है नहीं, इससे अच्छा तोड़।।......सच है शीतल जल से…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तू जो मनमौजी अगर, मैं भी मन का मोर  आ रे सूरज देख लें, किसमें कितना जोर .....वाह…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 167 in the group चित्र से काव्य तक
"  तुम हिम को करते तरल, तुम लाते बरसात तुम से हीं गति ले रहीं, मानसून की वात......सूरज की तपन…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service