For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!

!!! मनमोहन रूप सॅंवार रहे !!!
दुर्मिल सवैया- आठ सगण

मनमोहन  रूप  सॅंवार  रहे, छवि  देख रहे  जमुना जल में।
सब ग्वाल कमाल धमाल करें, झट कूद पड़े जमुना जल में।।
अधरों पर  ज्ञान भरी  मुरली, रस धार  बहे जमुना जल में।
गउ-ग्वालिन डूब गयीं रस में, तन  तैर रहे जमुना जल में।।

के0पी0सत्यम/ मौलिक व अप्रकाशित

 

Views: 767

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 17, 2013 at 2:06pm

केवल भाईजी, यही तो मेरा कहना है कि ऐसे में जबकि आपका प्रयास रंग नहीं ला पाया था, आपने आधी-अधूरी रचना को पटल पर क्यों रखा ?  कुछ और मेहनत किये होते. यही तो मेरा कहना है. 

वैसे आंचलिकता की महक से भरा शब्द ’बहे’ कोई ग़लत नहीं था.

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 17, 2013 at 1:09pm

आ0 सौरभ सर जी,  वाह क्या बात है!  आपने बिलकुल सही कहा.......यह दोनों बात ही मेरे संज्ञान में  थी। 'सॅंवार' और 'बही'.........'बही' के स्थान पर चार शब्द मेरे पास थे 1-ठगे....2-बहे.....3-जगे... और 4-बसे......।      स्वर में  'बही'  शब्द उपयोगी लगा....और आगे बढ़ गया।  आपके दायित्व निर्वहन के लिए आपको शत-शत नमन!      इन्ही विशेषताओ से ही ओ0बी0ओ0 की सार्थकता और उत्कृष्टता बनी हुई है।  आपके स्नेह, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन हेतु आपका बहुत-बहुत हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 17, 2013 at 12:42pm

आ0  सत्य नारायण भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 17, 2013 at 12:41pm

आ0 विजय  भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 17, 2013 at 12:38pm

आ0  नैथानी भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on November 17, 2013 at 12:38pm

आ0 शिज्जू  भाई जी,  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by Satyanarayan Singh on November 16, 2013 at 5:24pm

मन  को मुग्ध करती इस प्रस्तुति हेतु आपको हार्दिक बधाई. आदरनीय

Comment by विजय मिश्र on November 16, 2013 at 4:35pm
बहुत सुंदर केवलजी .आभार

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 16, 2013 at 11:47am

दुर्मिल सवैया पर उचित प्रयास हुआ है, भाई केवल प्रसादजी.

वैसे, मंच के प्रारूप के अनुरूप अपनी समझ को साझा करना मैं अपना कर्तव्य समझता हूँ.

आदरणीय गोपाल नारायण जी के कहे से मैं शत्-प्रतिशत् सहमत हूँ कि संवार के सं को गुरु की तरह लिया जाता है. लेकिन सही शब्द संवार है ही नहीं बल्कि वह सँवार है.

आप अन्यान्य स्थानों या कतिपय पत्रिकाओं में फिलहाल प्रचलित हुई अक्षरियों के प्रति अन्यथा भावुक न बनें जहाँ चन्द्रविन्दु के स्थान पर अनुस्वार का प्रयोग किया जाने लगा है. ऐसी जगहों पर हूँ को भी हूं लिखा जाने लगा है.

ऐसी कोई चलन हर तरह से नकारी जानी चाहिये.

दूसरे, शिल्प के लिहाज से सवैया के तीसरे पद का तुकान्त सही नहीं है.

यह आपको तभी समझ में आ गया होगा, जब आप रचना कर्म कर रहे थे. लेकिन अन्य कोई उपाय बनता न देख आपने चलता है कह कर इस पद को अपना लिया होगा.
भाईजी, यही चलता है  वाला तर्क आपकी रचनाओं को वह स्तर प्राप्त करने नहीं देता जिसके प्रति आप अत्यंत आग्रही दीखते हैं.

आपका रचनाकर्म वस्तुतः प्रयास है और प्रयास के कर्म में, भाईजी, अपने प्रति निरंकुश क्यों नहीं बनते आप ?

इस प्रस्तुति पर जिन पाठकों की सहमति आयी है उनमें से अधिकांश रचनाकर्म के धुरंधर हैं, लेकिन आपसे उन्होंने सुझाव का आदान-प्रदान नहीं किया है. यह आपके लिए भी सचेत हो जाने का इशारा है, भाईजी. 

बहरहाल, रचनाकर्म के लिए बधाई और शुभकामनाएँ
शुभ-शुभ
 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on November 16, 2013 at 11:31am

बहुत सुन्दर सवैया भाईजी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service