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मिट्टी का बर्तन..! ( अतुकांत )

सुन..! मेरे मिट्टी के बर्तन,

तू अपनी असलियत को पहचान

इस संसार की झूठी, खोखली वाहवाही से

परे रहना

अपनी गहराई से ज्यादा, अनुपयोगी द्रव्य को

मत सहेजना, ढुल जाता है..

 

इक दिन निकल गया मैं

किसी के कहने पर

इक नयी मिट्टी का बर्तन बनाने

उस मिटटी में सौंधी खुसबु,

रंग मेरी मिट्टी की ही तरह, साँवला

हुबहू.... मेरे जैसी ही मिट्टी

पर शायद तनिक, कंकरियां मिली थीं,

 

उससे न बना पाया,बर्तन

बनने से पहले ही

बिखर गया..टूट गया

मेरा मिट्टी का बर्तन...!

 

    जितेन्द्र ' गीत '

  

(मौलिक व् अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 4, 2013 at 10:12am

आदरणीय गिरिराज जी, आपका बहुत बहुत आभार, दीपोत्सव की शुभकामनायें, स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 4, 2013 at 10:10am

आदरणीय शिज्जू जी, आपका बहुत बहुत आभार, आपकी प्रतिक्रिया से लेखनकर्म को मनोबल मिला, अपना स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 4, 2013 at 10:07am

आदरणीय बृजेश जी, आपका का बहुत बहुत आभार, आपको रचना का शिल्प संतोषजनक प्रतीत हुआ, आपके कहने अनुसार मैंने रचना मैं सुधार कर लिया है, कृपया अपना मार्गदर्शन युहीं बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 3, 2013 at 11:02pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई भावपूर्ण अभिव्यक्ति के लिये बधाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on November 3, 2013 at 1:21pm

अति सुन्दर, अपनी बात कुशलता से प्रतीकों में कह गए, बधाई................

शुभ दीपावली

Comment by बृजेश नीरज on November 3, 2013 at 11:01am

रचना का शिल्प संतोषदायी है. कथ्य को साधने पर और काम करने की जरूरत है. व्याकरण दोष का ध्यान रखें.

'मेरी मिट्टी का बर्तन' की जगह 'मेरा मिट्टी का बर्तन' अधिक उपयुक्त है. बर्तन ही तेरा मेरा होता है, मिट्टी तो सबकी होती है. टाइपिंग की त्रुटियों पर आपको काम करने की जरूरत है, या तो ये असावधानी से हो रहा है या फिर उच्चारण दोष के कारण.

बहरहाल इस भावाभिव्यक्ति पर आपको हार्दिक बधाई!

सादर! 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 3, 2013 at 8:28am

आदरणीय जितेन्द्र भाई , इस प्रस्तुति के लिये आपको बधाई !!!! दीपावली की शुभ कामनाओं के साथ !!!!!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 3, 2013 at 12:08am

बढ़िया जितेन्द्र जी सतत परिश्रम से रचनाकर्म और भी बेहतरीन होती जायेगी शुभकामनायें एवं इस रचना के लिये दाद स्वीकार करें 

कृपया ध्यान दे...

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