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चप्पल   घिस-घिस कर आधे रह गए थे सूरज शर्मा के । पिछले 3 साल से अपनी मास्टर  डिग्री की फ़ाइल प्लास्टिक के थैले में रखे नौकरी की तलाश में  जगह-जगह धक्के और ठोकरें खाते घूम जो रहा था । मई महीने की दोपहरी थी ।  दैनिक पत्रिका के  " वान्टेड " वाले पृष्ठ में कई जगह पेन से गोल  घेरा लगाए  सूरज पिछले चार घंटे  से शहर के  चक्कर लगाते भूख प्यास से बेहाल हो चुका था । शाम  तक  2-3  इंटरव्यू और देना था उसे । बची-खुची हिम्मत जुटा , सिटी बस पकड़ने वो दौड़ पडा । सड़क पर  पहुँचते-पहुँचते सहसा चकराकर गिर  पड़ा  और  विपरीत दिशा से आता एक ट्रक उसके बाएं पैर को कुचलते  निकल गया । देखते-देखते भीड़ लग गयी । बेहोश हो चुके सूरज को लोगों ने अस्पताल पहुंचाया । होश आने पर सूरज ने देखा उसका बायाँ पैर घुटने के ऊपर से काटा जा चुका है । मन पीड़ा और अपने अपाहिज हो जाने के अहसास से तड़प उठा उसका । सहसा उसे ध्यान आया " वांटेड " वाले पृष्ठ में शायद  किसी बैंक का विज्ञापन था "  केवल विकलांगों के लिए सीधी  भर्ती "। उसका दिल अपने दोनों पैरों से बाल्लियों उछलने लगा  पर  उसके उदास चेहरे पर एक  विद्रूप सी मुस्कराहट उभर आई । 

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मौलिक एवं अप्रकाशित -----
कपीश चन्द्र श्रीवास्तव --- दुर्ग 

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Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 9, 2013 at 7:14pm


   आदरणीय " बागी " जी लघु कथा की प्रशंशा हेतु आपका कृतज्ञ हूँ । आपने जिन शब्दों में कथा की तारीफ़ किया है उससे मेरा मनोबल बढ़ा है । उत्साहवर्धन के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद । 

Comment by aman kumar on October 7, 2013 at 2:59pm

समाज की दशा का बखूबी चित्रण .................

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 6:53pm


        आदरणीया  महिमाश्री   जी  मेरी लघु-कथा " विडम्बना "  आपको अच्छी लगी  इसके  लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । प्रशंशा के लिए  आभारी हूँ । 

Comment by MAHIMA SHREE on October 6, 2013 at 6:26pm

आदरणीय कपिश चन्द्रा जी .. आपकी लेखनी को नमन .. विडम्बना शीर्षक को सार्थक करती आपकी लघु कथा उद्वेलित कर गयी ...

Comment by Shubhranshu Pandey on October 6, 2013 at 5:19pm

आदरणीय कपीश चन्द्र जी. 

एक बेरोजगार क्या सोच सकता है इसकी एक बानगी दिखाया है आपने..सुन्दर 

सादर.

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 5:11pm


        आदरणीया  प्राची  जी  मेरी लघु-कथा " विडम्बना "  आपको अच्छी लगी  इसके  लिए बहुत-बहुत धन्यवाद । प्रशंशा के लिए   आभारी हूँ । 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 4:10pm

झकझोर कर रख दिया इस लघुकथा नें 

बहुत सुन्दर 

Comment by Kapish Chandra Shrivastava on October 6, 2013 at 12:40pm

      श्री अरुण शर्मा जी । लघु-कथा की प्रशंशा कर उत्साहवर्धन करने हेतु आपका बहुत बहुत धन्यवाद । कोशिश करूंगा कुछ अच्छी रचनाएं और पोस्ट कर सकूं ।  
Comment by अरुन 'अनन्त' on October 6, 2013 at 11:38am

निःशब्द हूँ लघुकथा पढ़कर जितनी भी प्रशंसा करूँ कम पड़ जाएगी इस बेहतरीन लघुकथा हेतु दिली से बधाई स्वीकारें. आपकी रचनाओं की प्रतीक्षा रहेगी.

Comment by Saarthi Baidyanath on October 6, 2013 at 11:30am

बढ़िया ...एक अच्छी लघु कथा :)

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