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हे धर्मराज!.............डॉ० प्राची

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

लोभ-मोह के छद्माकर्षण, प्रज्ञा से नित कर विश्लेषण,

इप्सा तर्पण हो प्रतिपूरित, मन में तृष्णा निःशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल, निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

कर्तव्यों का प्रतिपालन कर,निष्काम कर्म प्रतिपादन कर,

फल से हो सर्वस मुक्त मनस,बस नेह हृदय मधु-शेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

निवर्ण–सुवर्ण, अभिजात-मलिन, परिजन-परजन, शुभदिन दुर्दिन,

निःस्पर्श रहे हर आडम्बर, मन अंतर ऊर्जित त्वेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

 

हे धर्म-धरण! हे प्राण-हरण! सत् तत्व ज्ञान, नत शीश शरण,

श्वाँस-प्रश्वाँस तुम्हे अर्पित, निशप्रात दिवस दिनशेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

मौलिक और अप्रकाशित 

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:31am

आदरणीया अन्नपूर्णा बाजपेई जी 

अभिव्यक्ति के भाव शब्द प्रवाह आपको पसंद आये, यह जानना उत्साहवर्धक है.सादर धन्यवाद 

सहयोग बना रहे 

सादर.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 1, 2013 at 9:30am

सामजिक प्राणी होने के कारण कई कई आडम्बर मनुष्य को बाहर से घेरे ही रहते हैं पर मन के स्तर पर आडम्बररहित भावों को शुद्धता से जीने के लिए उसे दर्शाना या परिलक्षित करना आवश्यक नहीं.

रचना पर उपस्थिति के लिए धन्यवाद आ० श्याम जुनेजा जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 1, 2013 at 8:05am

आदरणीया प्राची जी , बहुत सुन्दर , सारगर्भित प्रार्थना !!तहे दिल से बधाई !!

Comment by Abhinav Arun on September 1, 2013 at 6:37am

निवर्ण–सुवर्ण, अभिजात-मलिन

परिजन-परजन, शुभदिन दुर्दिन,

निःस्पर्श रहे हर आडम्बर

मन अंतर ऊर्जित त्वेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे......बहुत सुन्दर सारगर्भित सशक्त रचना आदरणीय डॉ प्राची जी .जीवन का सार ..विचारों का आधार सभी के सभी मधुर मनोरम अतीव सुन्दर !!

Comment by vandana on September 1, 2013 at 6:31am

बहुत निर्मल प्रार्थना ...इस प्रार्थना में हमें भी शामिल कर लीजिये आदरणीया  डॉ. साहिबा 

Comment by vijayashree on September 1, 2013 at 12:38am

निवर्ण–सुवर्ण, अभिजात-मलिन

परिजन-परजन, शुभदिन दुर्दिन,

निःस्पर्श रहे हर आडम्बर

मन अंतर ऊर्जित त्वेष रहे,

यह जीवन यज्ञ चले अविरल निज प्राणार्पण हुतशेष रहे

हे धर्मराज! स्वीकार मुझे, प्रति क्षण तेरा संप्रेष रहे

आपकी रचनाओं में अद्वितीय शब्दों का प्रवाह अविरल बहता रहे

शुभकामनाएँ 

 

Comment by annapurna bajpai on August 31, 2013 at 11:57pm

आ0 प्राची जी शब्दों की अविरल  धारा मे मंत्र मुग्ध सी बहती चली गई  हूँ , शुभकामनाओं के बहुत बधाई संप्रेषित करती हूँ । 

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