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वंदना......हरिगीतिका

हे!  ज्ञान  दाती   दुःख  हरती   प्रेम  ममता   वारती।

यम नियम नियमन दिशा दर्शन गगन गुरूता धारती।।

तुम सर्व हो  तुम गर्व हो  तुम आदि  गंगा गामिनी।

रति सौम्य सागर सती आगर मोक्ष वरदं दायिनी।।1

रघुवीर पूजें  कृष्ण कूंजे  शक्ति दुर्गा  दामिनी।

अभिमान ऐसा क्लेष जैसा पाप शापं नाशिनी।।

अरि नष्ट करती मित्र बनती हाथ सिर पर फेरती।

सुख सार भरणी कष्ट हरणी तोष निश-दिन टेरती।।2

मैं मूर्ख जातं आत्म विमुखं शोक दारूण गम्यता।

तू  रक्ष माता  शरण दाता   दोष वाणी क्षम्यता।।

शिव शक्ति शानं रक्त पानं दुष्ट दलनं काल सी।

मन शांति निर्मल भूमि उर्मिल बाल रक्षक मात सी।।3

पर  प्रीति  प्रियसी  पर्व  प्रेरक   प्रेम पावन   दीप सी।

तन तीर तरूणी तीक्ष्ण तेवर तमस-तम तुम जीत सी।।

जब जयति जय जय जाप जपता जंग जीवन जीतता।

कर कर्म करूणा  क्रोध कल्मष  काल काटहि तीव्रता।।4

के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:58pm

आ0 प्राची मैम जी,  सादर प्रणाम!  जी, कुछ जल्दीबाजी में चूक हो गयी! जी मैम, सही कर लूंगा।  आपके स्नेह, मार्गदर्शन और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:50pm

आ0 आशीष नैथानी भांई जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:49pm

आ0 बृजेश भांई जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:44pm

आ0 अरून अनन्त भांई जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:44pm

आ0 सुरेन्द्र भ्रमर जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:41pm

आ0 अन्नपूर्णा जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on August 25, 2013 at 7:40pm

आ0 विनीता जी,  सादर प्रणाम!  आपके स्नेह और उत्साहवर्धन के लिए आपका तहेदिल से बहुत-बहुत आभार।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on August 24, 2013 at 2:13pm

बहुत खूबसूरत हरिगीतिका छंद लिखा है आ० केवल प्रसाद जी 

शक्ति स्वरूपा के चरणों में समर्पित इस वन्दना के लिए आपको हृदय तल से बहुत बहुत बधाई 

रति सौम्य सा/ गर सती आ/ गर मोक्ष वर/ दं दायिनी................... रेखांकित अंश में सती शब्द शिल्प के तौर पर सही नहीं है ... बारहवीं मात्रा लघु होनी चाहिये पर यहाँ दीर्घ हो रही है 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on August 24, 2013 at 11:57am

सुन्दर वंदना.... बधाई भाई केवल प्रसाद जी !!!

Comment by बृजेश नीरज on August 24, 2013 at 11:47am

आदरणीय केवल भाई, वाह! बहुत ही सुन्दर वंदना! वृत्यानुप्रास का सयास प्रयोग बहुत रूचिकर लगा।

इस रचना पर आपको हार्दिक बधाई!

सादर!

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