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पानी की बूँदें...

बरसे बदरा नीर बहाये

ज्यों गोरी घूँघट शरमाये

चाल चले ऐसी मस्तानी

ज्यूँ बह चली पुरवा रानी

बादल गरजे प्रेमी तड़पे

झलक तेरी को गोरी तरसे

आजा अंगना दरस दिखा जा

नयन मेरे तू शीतल कर दे

ज्यूँ घटा का रूप लेके

यूँ लटें चेहरे पर छाई

मोती सी पानी की बूंदें

छलक रही चेहरे पर ऐसे

स्पर्श तेरा स्वर्णिम पाने को

पानी की बूँदें भी तरसे.

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment

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Comment by वेदिका on July 19, 2013 at 4:05pm

सावन, साजन, विरह, प्रेम, तडप, और मिलन,, सारे भाव समाहित रचना पर हार्दिक बधाई

प्रिय आरती जी!  

Comment by Shyam Narain Verma on July 19, 2013 at 3:15pm
बहुत ही सुन्दर रचना , हार्दिक बधाई......................................."
Comment by annapurna bajpai on July 19, 2013 at 12:53pm

आरती जी आपकी कविता मे गौरी शब्द को गोरी कर लें ।

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