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विधि का विधान : प्रो. सत्यसहाय दिवंगत.....

विधि का विधान : प्रो. सत्यसहाय दिवंगत.....
संजीव वर्मा 'सलिल' SS Shrivastava.jpg
वयोवृद्ध शिक्षाविद-अर्थशास्त्री प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव
बिलासपुर, छत्तीसगढ़ २८.११.२०१०. स्थानीय अपोलो चिकित्सालय में आज देर रात्रि विख्यात अर्थशास्त्री, छत्तीसगढ़ राज्य में महाविद्यालायीन शिक्षा के सुदृढ़ स्तम्भ रहे अर्थशास्त्र की ३ उच्चस्तरीय पुस्तकों के लेखक, प्रादेशिक कायस्थ महासभा मध्यप्रदेश के पूर्व प्रांतीय अध्यक्ष रोटेरियन, लायन प्रो. सत्य सहाय का लम्बी बीमारी के पश्चात् देहावसान हो गया. खेद है कि छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार आपने प्रदेश के इस गौरव पुरुष के प्रति पूरी तरह अनभिज्ञ तथा असावधान रही. वर्ष १९९४ से पक्षाघात (लकवे) से पीड़ित प्रो. सहाय शारीरिक पीड़ा को चुनौती देते हुए भी सतत सृजन कर्म में संलग्न रहे. शासन सजग रहकर उन्हें राजकीय अतिथि के नाते एम्स दिल्ली या अन्य उन्नत चिकित्सालय में भेजकर श्रेष्ठ विशेषज्ञों की सेवा उपलब्ध कराता तो वे रोग-मुक्त हो सकते थे.
१६ वर्षों से लगातार पक्षाघात (लकवा) ग्रस्त तथा शैयाशाई होने पर भी उनके मन-मष्तिष्क न केवल स्वस्थ्य-सक्रिय रहा अपितु उनमें सर्व-हितार्थ कुछ न कुछ करते रहने की अनुकरणीय वृत्ति भी बनी रही. वे लगातार न केवल अव्यवसायिक सामाजिक पत्रिका 'संपर्क' का संपादन-प्रकाशन करते रहे अपितु इसी वर्ष उन्होंने 'राम रामायण' शीर्षक लघु पुस्तक का लेखन-प्रकाशन किया था. इसमें रामायण का महत्त्व, रामायण सर्वप्रथम किसने लिखी, शंकर जी द्वारा तुलसी को रामकथा साधारण बोल-चाल की भाषा में लिखने की सलाह, जब तुलसी को हनुमानजी ने श्रीराम के दर्शन करवाये, रामकथा में हनुमानजी की उपस्थिति, सीताजी का पृथ्वी से पैदा होना, रामायण कविता नहीं मंत्र, दशरथ द्वारा कैकेयी को २ वरदान, श्री राम द्वारा श्रीभरत को अयोध्या की गद्दी सौपना, श्री भारत द्वारा कौशल्या को सती होने से रोकना, रामायण में सर्वाधिक उपेक्षित पात्र उर्मिला, सीता जी का दूसरा वनवास, रामायण में सुंदरकाण्ड, हनुमानजी द्वारा शनिदेव को रावण की कैद से मुक्त कराना, परशुराम प्रसंग की सचाई, रावण के अंतिम क्षण, लव-कुश काण्ड, सीताजी का पृथ्वी की गोद में समाना, श्री राम द्वारा बाली-वध, शूर्पनखा-प्रसंग में श्री राम द्वारा लक्ष्मण को कुँवारा कहा जाना, श्री रामेश्वरम की स्थापना, सीताजी की स्वर्ण-प्रतिमा, रावण के वंशज, राम के बंदर, कैकेई का पूर्वजन्म, मंथरा को अयोध्या में रखेजाने का उद्देश्य, मनीराम की छावनी, पशुओं के प्रति शबरी की करुणा, सीताजी का राजयोग न होना, सीताजी का रावण की पुत्री होना, विभीषण-प्रसंग, श्री राम द्वारा भाइयों में राज्य-विभाजन आदि जनरूचि के रोचक प्रसंगों का उल्लेख किया है. गागर में सागर की तरह विविध प्रसंगों को समेटे यह कृति प्रो. सहाय की जिजीविषा का पुष्ट-प्रमाण है.
प्रो. सत्यसहाय जीवंत व्यक्तित्व, कर्मठ कृतित्व तथा मौलिक मतित्व की त्रिविभूति-संपन्न ऐसे व्यक्तित्व थे जिन पर कोई भी राज्य-सत्ता गर्व कर सकती है. ग्राम रनेह (राजा नल से समबन्धित ऐतिहासिक नलेह), तहसील हटा (राजा हट्टेशाह की नगरी), जिला दमोह (रानी दमयन्ती की नगरी) में जन्में, बांदकपुर स्थित उपज्योतिर्लिंग जागेश्वरनाथ पुण्य भूमि के निवासी संपन्न-प्रतिष्ठित समाजसेवी स्व. सी.एल. श्रीवास्तव तथा धर्मपरायण स्व. महारानी देवी के कनिष्ठ पुत्र सत्यसहाय की प्राथमिक शिक्षा रनेह, ग्राम, उच्चतर माध्यमिक शिक्षा दमोह तथा महाविद्यालयीन शिक्षा इलाहाबाद में अग्रज स्व. पन्नालाल श्रीवास्तव (आपने समय के प्रखर पत्रकार, दैनिक लीडर तथा अमृत बाज़ार पत्रिका के उपसंपादक, पत्रकारिता पर महत्वपूर्ण पुस्तक के लेखक) के सानिंध्य में पूर्ण हुई. अग्रज के पद-चिन्हों पर चलते हुए पत्रकारिता के प्रति लगाव स्वाभाविक था. उनके कई लेख, रिपोर्ताज, साक्षात्कार आदि प्रकाशित हुए. वे लीडर पत्रिका के फ़िल्मी स्तम्भ के संपादक रहे. उनके द्वारा फ़िल्मी गीत-गायक स्व. मुकेश व गीता राय का साक्षात्कार बहुचर्चित हुआ.
उन्हीं दिनों महात्मा गाँधी के निजी सचिव स्व. महेशदत्त मिश्र पन्नालाल जी के साथ रहकर राजनीति शास्त्र में एम.ए. कर रहे थे. तरुण सत्यसहाय को गाँधी जी की रेलयात्रा के समय बकरीका ताज़ा दूध पहुँचाने का दायित्व मिला. गाँधी जी की रेलगाड़ी इलाहाबाद पहुँची तो भरी भीड़ के बीच छोटे कद के सत्यसहाय जी नजर नहीं आये, रेलगाड़ी रवाना होने का समय हो गया तो मिश्रजी चिंतित हुए, उन्होंने आवाज़ लगाई 'सत्य सहाय कहाँ हो? दूध लाओ.' भीड़ में घिरे सत्यसहाय जी जोर से चिल्लाये 'यहाँ हूँ' और उन्होंने दूध का डिब्बा ऊपर उठाया, लोगों ने देखा मिश्र जी डब्बा पकड़ नहीं पा रहे और रेलगाड़ी रेंगने लगी तो कुछ लम्बे लोगों ने सहाय जी को ऊपर उठाया, मिश्र जी ने लपककर डब्बा पकड़ा. बापू ने खिड़की से यह दृश्य देखा तो खिड़कीसे हाथ निकालकर उन्हें आशीर्वाद दिया. मिश्रा जी के सानिंध्य में वे अनेक नेताओं से मिले. सन १९४८ में अर्थशास्त्र में एम.ए. करने के पश्चात् नव स्वतंत्र देश का भविष्य गढ़ने और अनजाने क्षेत्रों को जानने-समझने की ललक उन्हें बिलासपुर (छत्तीसगढ़) ले आयी.
पन्नालाल जी अमृत बाज़ार पत्रिका और लीडर जैसे राष्ट्रीय अंग्रेजी अख़बारों में संवाददाता और उपसंपादक रहे थे. वे मध्य प्रान्त और विदर्भ के नेताओं को राष्ट्री क्षितिज में उभारने में ही सक्रिय नहीं रहे अपितु मध्य अंचल के तरुणों को अध्ययन और आजीविका जुटने में भी मार्गदर्शक रहे. विख्यात पुरातत्वविद राजेश्वर गुरु उनके निकट थे, जबलपुर के प्रसिद्द पत्रकार रामेश्वर गुरु को अपना सहायक बनाकर पन्नालाल जी ने संवाददाता बनाया था. कम लोग जानते हैं मध्य-प्रदेश उच्च न्यायालय के विद्वान् अधिवक्ता श्री राजेंद्र तिवारी भी प्रारंभ में प्रारंभ में पत्रकार ही थे. उन्होंने बताया कि वे स्थानीय पत्रों में लिखते थे. गुरु जी का जामाता होने के बाद वे पन्नालाल जी के संपर्क में आये तो पन्नालाल जी ने अपना टाइपराइटर उन्हें दिया तथा राष्ट्रीय अख़बारों से रिपोर्टर के रूप में जोड़ा. अपने अग्रज के घर में अंचल के युवकों को सदा आत्मीयता मिलते देख सत्य सहाय जी को भी यही विरासत मिली.
आदर्श शिक्षक तथा प्रशासनविद:
बुंदेलखंड में कहावत है 'जैसा पियो पानी, वैसी बोलो बनी, जैसा खाओ अन्न, वैसा होए मन'- सत्यसहाय जी के व्यक्तित्व में सुनार नदी के पानी साफगोई, नर्मदाजल की सी निर्मलता व गति तथा गंगाजल की पवित्रता तो थी ही बिलासपुर छत्तीसगढ़ में बसनेपर अरपा नदीकी देशजता और शिवनाथ नदीकी मिलनसारिता सोने में सुहागा की तरह मिल गई. वे स्थानीय एस.बी.आर. महाविद्यालय में अर्थशास्त्र के व्याख्याता हो गये. उनका प्रभावशाली व्यक्तित्व, सरस-सटीक शिक्षण शैली, सामयिक उदाहरणों से विषय को समझाने तथा विद्यार्थी की कठिनाई को समझकर सुलझाने की प्रवृत्ति ने उन्हें सर्व-प्रिय बना दिया. जहाँ पहले छात्र अर्थशास्त्र विषय से दूर भागते थे, अब आकर्षित होने लगे. सन १९६४ तक उनका नाम स्थापित तथा प्रसिद्ध हो चुका था. इस मध्य १९५८ से १९६० तक उन्होंने नव-स्थापित 'ठाकुर छेदीलाल महाविद्यालय जांजगीर' के प्राचार्य का चुनौतीपूर्ण दायित्व सफलतापूर्वक निभाया और महाविद्यालय को सफलता की राह पर आगे बढ़ाया. उस समय शैक्षणिक दृष्टि से सर्वाधिक पिछड़े राज्य छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा की दीपशिखा प्रज्वलित करनेवालों में अग्रगण्य स्व. सत्य सहाय अपनी मिसाल आप थे.जांजगीर महाविद्यालय सफलतापूर्वक चलने पर वे वापिस बिलासपुर आये तथा योजना बनाकर एक अन्य ग्रामीण कसबे खरसिया के विख्यात राजनेता-व्यवसायी स्व. लखीराम अग्रवाल प्रेरित कर महाविद्यालय स्थापित करने में जुट गये. लम्बे २५ वर्षों तक प्रांतीय सरकार से अनुदान प्राप्तकर यह महाविद्यालय शासकीय महाविद्यालय बन गया. इस मध्य प्रदेश में विविध दलों की सरकारें बनीं... लखीराम जी तत्कालीन जनसंघ से जुड़े थे किन्तु सत्यसहाय जी की समर्पणवृत्ति, सरलता, स्पष्टता तथा कुशलता के कारण यह एकमात्र महाविद्यालय था जिसे हमेशा अनुदान मिलता रहा.
उन्होंने रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर में अधिष्ठाता छात्र-कल्याण परिषद्, अधिष्ठाता महाविद्यालयीन विकास परिषद् तथा निदेशक जनजाति प्रशासनिक सेवा प्रशिक्षण के रूप में भी अपनी कर्म-कुशलता की छाप छोड़ी.
आपके विद्यार्थियों में स्व. बी.आर. यादव, स्व. राजेंद्र शुक्ल. श्री अशोक राव, श्री सत्यनारायण शर्मा आदि अविभाजित मध्यप्रदेश / छतीसगढ़ के कैबिनेट मंत्री, पुरुषोत्तम कौशिक केन्द्रीय मंत्री तथा स्व. श्रीकांत वर्मा सांसद और राष्ट्रीय राजनीति के निर्धारक रहे. अविभाजित म.प्र. के वरिष्ठ नेता स्वास्थ्य मंत्री स्व. डॉ. रामाचरण राय, शिक्षामंत्री स्व. चित्रकांत जायसवाल से उनके पारिवारिक सम्बन्ध थे. उनके अनेक विद्यार्थी उच्चतम प्रशासनिक पदों पर तथा कई कुलपति, प्राचार्य, निदेशक आदि भी हुए किन्तु सहाय जी ने कभी किसीसे नियम के विपरीत कोई कार्य नहीं कराया. अतः उन्होंने सभी से सद्भावना तथा सम्मान पाया.
सक्रिय समाज सेवी:
प्रो. सत्यसहाय समर्पित समाज सुधारक भी थे. उन्होंने छतीसगढ़ अंचल में लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने की कुप्रथा से आगे बढ़कर संघर्ष किया. ग्रामीण अंचल में रहकर तथा सामाजिक विरोध सहकर भी उन्होंने न केवल अपनी ४ पुत्रियों को स्नातकोत्तर शिक्षा दिलाई अपितु २ पुत्रियों को महाविद्यालयीन प्राध्यापक बनने हेतु प्रोत्साहित तथा विवाहोपरांत शोधकार्य हेतु सतत प्रेरित किया. इतना ही नहीं उन्होंने अपने संपर्क के सैंकड़ों परिवारों को भी लड़कियों को पढ़ाने की प्रेरणा दी.
स्वेच्छा से सेवानिवृत्ति के पश्चात् वे सामाजिक ऋण-की अदायगी करने में जुट गये. प्रादेशिक चित्रगुप्त महासभा मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने जबलपुर, बरमान (नरसिंहपुर), उज्जैन, दमोह, बालाघाट, बिलासपुर आदि अनेक स्थानों पर युवक-युवती, परिचय सम्मलेन, मितव्ययी दहेज़रहित सामूहिक आदर्श विवाह सम्मलेन आदि आयोजित कराये. वैवाहिक जानकारियाँ एकत्रित कर चित्राशीष जबलपुर तथा संपर्क बिलासपुर पत्रिकाओं के माध्यम से उन्होंने अभिभावकों को उपलब्ध कराईं.
विविध काल खण्डों में सत्यसहाय जी ने लायन तथा रोटरी क्लबों के माध्यम से भी सामाजिक सेवा की अनेक योजनाओं को क्रियान्वित कर अपूर्व सदस्यतावृद्धि हेतु श्रेष्ठ गवर्नर पदक प्राप्त किये. वे जो भी कार्य करते थे दत्तचित्त होकर लक्ष्य पाने तक करते थे.
छतीसगढ़ शासन जागे :
बिलासपुर तथा छत्तीसगढ़ के विविध अंचलों में प्रो. असत्य सहाय के निधन का समाचार पाते ही शोक व्याप्त हो गया. छतीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश के अनेक महाविद्यालयों ने उनकी स्मृति में शोक प्रस्ताव पारित किये. अभियान सांस्कृतिक-साहित्यिक संस्था जबलपुर, रोटरी क्राउन जबलपुर, रोटरी क्लब बिलासपुर, रोटरी क्लब खरसिया, लायंस क्लब खरसिया, अखिल भारतीय कायस्थ महासभा, सनातन कायस्थ महापरिवार मुम्बई, विक्रम महाविद्यालय उज्जैन, शासकीय महाकौशल महाविद्यालय जबलपुर, कायस्थ समाज बिलासपुर, कायस्थ कल्याण परिषद् बिलासपुर, कायस्थ सेना जबलपुर आदि ने प्रो. सत्यसहाय के निधन पर श्रैद्धांजलि व्यक्त करते हुए उन्हें युग निर्माता निरूपित किया है. छत्तीसगढ़ शासन से अपेक्षा है कि खरसिया महाविद्यालय में उनकी प्रतिमा स्थापित की जाये तथा रविशंकर विश्वविद्यालय रायपुर एवं गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर में अर्थशास्त्र विषयक उच्च शोध कार्यों हेतु प्रो. सत्यसहाय शोधपीठ की स्थापना की जाए.
दिव्यनर्मदा परिवार प्रो. सत्यसहाय के ब्रम्हलीन होने को शोक का कारण न मानते हुए इसे देह-धर्म के रूप में विधि के विधान के रूप में नत शिर स्वीकारते हुए संकल्प लेता है कि दिवंगत के आदर्शों के क्रियान्वयन हेतु सतत सक्रिय रहेगा. हिन्दी को विश्व भाषा के रूप में विकसित करने की प्रो. सत्यसहाय की मनोकामना को मूर्तरूप देने के लिये सतत प्रयास जारी रहेंगे. आप सब इस पुनी कार्य में सहयोगी हों, यही सच्ची कर्मांजलि होगी.

**********************

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति भावांजलि:
तुममें जीवित था...
संजीव 'सलिल'
*
तुममें जीवित था इतिहास,
किन्तु न था युग को आभास...
*
पराधीनता के दिन देखे.
सत्याग्रह आन्दोलन लेखे..
प्रतिभा-पूरित सुत 'रनेह' के,
शत प्रसंग रोचक अनलेखे..
तुम दमोह के दीपक अनुपम
देते दिव्य उजास...
*
गंगा-विश्वनाथ मन भाये,
'छोटे' में विराट लख पाये..
अरपा नदी बिलासा माई-
छतीसगढ़ में रम harhsaaye..
कॉलेज-अर्थशास्त्र ने पाया-
नव उत्थान-विकास...
*
साक्ष्य खरसिया-जांजगीर है.
स्वस्थ रखी तुमने नजीर है..
व्याख्याता-प्राचार्य बहुगुणी
कीर्ति-विद्वता खुद नजीर है..
छात्र-कल्याण अधिष्ठाता रह-
हुए लोकप्रिय खास...
*
कार्यस्थों को राह दिखायी.
लायन-रोटरी ज्योति जलायी.
हिंद और हिन्दी के वाहक
अमिय लुटाया हो विषपायी..
अक्षय-निधि आशा-संबल था-
सार्थक किये प्रयास...
*
श्रम-विद्या की सतत साधना.
विमल वन्दना, पुण्य प्रार्थना,
तुम अशोक थे, तुम अनूप थे-
महावीर कर विपद सामना,
नेह-नर्मदा-सलिल पानकर-
हरी पीर-संत्रास...
*
कीर्ति-कथा मोहिनी अगेह की.
अर्थशास्त्र-शिक्षा विदेह सी.
सत-शिव-सुंदर की उपासना-
शब्दाक्षर आदित्य-गेह की..
किया निशा में भी उजियारा.
हर अज्ञान-तिमिर का त्रास...
*
संस्मरण बहुरंगी अनगिन,
क्या खोया?, क्या पाया? बिन-गिन..
गुप्त चित्त में चित्र चित्रगुप्त प्रभु!
कर्म-कथाएँ लिखें पल-छीन.
हरी उपेक्षित मन की पीड़ा
दिया विपुल अधरों को हास...
*
शिष्य बने जो मंत्री-शासन,
करें नीति से जन का पालन..
सत्ता जन-हित में प्रवृत्त हो-
दस दिश सुख दे सके सु-शासन..
विद्यानगर बसा सामाजिक
नायक लिये हुलास...
*
प्रखर कहानी कर्मयोग की,
आपद, श्रम साफल्य-योग की.
थी जिजीविषा तुममें अनुपम-
त्याग समर्पण कश्र-भोग की..
बुन्देली भू के सपूत हे!
फ़ैली सुरभि-सुवास...
******

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति गीतांजलि :

शत नमन...

*
शत नमन, हे महामानव!
शत नमन...
*
धरा से उठकर गगन पर छा गये,
स्वजन, परिजन, पुरजनों को भा गये..
कार्य में स्थित रहे कार्यस्थ हे!
काय-स्थित दैव को तुम भा गये..
हुआ है स्तब्ध यह सारा चमन...
*
अमिट प्रतिभा, अजित जीवट के धनी.
बहुमुखी सामर्थ्य, थे पक्के धुनी..
विरल देखे, अब कहाँ ऐसे सु-जन?
अनुकरण युग कर सके, वैसे गुनी..
सतत उन्नति की रही तुममें लगन...
*
दिशा-दर्शक! स्वप्न कर साकार तुम.
दे सके माटी को शत आकार तुम..
संस्कारित सकल पीढ़ी को किया-
असहमत को भी रहे स्वीकार तुम.
काश हममें भी जले ऐसी अगन...
*****

प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव के प्रति शब्द-सुमनांजलि

नमन हमारे...

संजीव 'सलिल'

*

पूज्य चरण में अर्पित हैं

शत नमन हमारे...

*

मन में यादों के सुगंध है,

मिला सदा आशीष.

जितना तुमने दिया, शत गुणा

तुमको दे जगदीश.

स्वागत हेतु लगे सुरपुर में

बंदनवारे....

*

तुम भास्कर, हम हुए प्रकाशित,

हैं आभारी.

बिना तुम्हारे हैं अपूर्ण हम

हे यशधारी..

यादों का पाथेय लगाये

हमें किनारे...

*

नेक प्रेरणा दे अनेक को,

विदा हो गये.

खोज रहे हम, तुम विदेह में

लीन हो गये..

मन प्राणों को दीपित करते

कर्म तुम्हारे...

*****

प्रो सत्य सहाय श्रीवास्तव के प्रति श्रृद्धा-सुमन :

संजीव 'सलिल'

*

षट्पदी

मौत ले जाती है काया, कार्य होते हैं अमर.

ज्यों की त्यों चादर राखी, निर्मल बुन्देली पूज्यवर!

हे कलम के धनी! शिक्षादान आजीवन किया-

हरा तम अज्ञानका, जब तक जला जीवन-दिया.

धरा छतीसगढ़ की ऋण से उऋण हो सकती नहीं.

'सलिल' सेवा-साधना होती अजर मिटती नहीं..

******

चतुष्पदियाँ / मुक्तक

मन-किवाड़ पर दस्तक देता, सुधि का बंदनवार.

दीप जलाये स्मृतियों के, झिलमिल जग उजियार.

इस जग से तुम चले गये, मन से कैसे जाओगे?

धूप-छाँव में, सुख-दुःख में, सच याद बहुत आओगे..

*****

नहीं किताबी शिक्षक थे तुम, गुरुवत बाँटा ज्ञान.

शत कंकर तराशकर शंकर, गढ़े बिना अभिमान..

जीवन गीता, अनुभव रामायण के अनुपम पाठ-

श्वास-श्वास तुम रहे पढ़ाते, बन रस-निधि, रस-खान..

*****

सफल उसी का जीवन, जिसका होता सत्य-सहाय.

सत्य सहाय न हो पाये तो मानव हो निरुपाय..

जो होता निरुपाय उसीका जीवन निष्फल जान-

स्वप्न किये साकार अनेकों के, रच नव अध्याय..

******

पुण्य फले तब ही जुड़ पाया, तुमसे स्नेहिल नाता.

तुममें वाचिक परंपरा को, मूर्तित होते पाया..

जटिल शुष्क नीरस विषयों को सरस बना समझाते-

दोष-हरण सद्गुण-प्रसार के थे अनुपम व्याख्याता..

*****

तुम गये तो शून्य सा मन हो गया है.

है जगत में किन्तु लगता खो गया है..

कभी लगता आँख में आँसू नहीं हैं-

कभी लगता व्यथित हो मन रो गया है..

*****

याद तुम्हारी गीत बन रही,

जीवन की नव रीत बन रही.

हार मान हर हार ग्रहण की-

श्वास-आस अब जीत बन रही..

*****

अश्रुधारा से तुम्हें तर्पण करेंगे.

हृदय के उद्गार शत अर्पण करेंगे..

आत्म पर जब भी 'सलिल' संदेह होगा-

सुधि तुम्हारी कसौटी-दर्पण करेंगे..

*****

तुम थे तो घर-घर लगता था.

हर कण अपनापन पगता था..

पारस परस तुम्हारा पाकर-

सोया अंतर्मन जगता था..

*****

सुधियों के दोहे

सत्य सहाय सदा रहे, दो आशा-सहकार.

शांति-राज पुष्पा सके, सुषमा-कृष्ण निहार..

*

कीर्ति-किरण हनुमान की, दीप्ति इंद्र शशि सोम.

चन्द्र इंदु सत्य सुधा, माया-मुकुलित ॐ..

*

जब भी जीवन मिले कर सफल साधना हाथ.

सत-शिव सुंदर रचें पा, सत-चित-आनंद नाथ..

*

सत्य-यज्ञ में हो सके, जीवन समिधा दैव.

औरों का कुछ भलाकर, सार्थक बने सदैव..

*

कदम-कदम संघर्ष कर, सके लक्ष्य को जीत.

पूज्यपाद वर दीजिये, 'सलिल'-शत्रु हो मीत..

*

महाकाल से भी किये, बरसों दो-दो हाथ.

निज इच्छा से भू तजी, गह सुरपुर का पाथ..

*

लखी राम ने भी 'सलिल', कब आओ तुम, राह.

हमें दुखीकर तुम गये, पूरी करने चाह..

*

शिरोधार्य रह मौन हम, विधि का करें विधान.

दिल रोये, चुप हों नयन, अधर करें यश-गान..

*

सद्गुरु बिन सुर कर नहीं, पाये 'सलिल' निभाव.

बिन आवेदन चुन लिया, तुमको- मिटे अभाव..

*

देह जलाने ले गये, वे जिनसे था नेह.

जिन्हें दिखाया गेह था, करते वही-गेह..

*

आकुल-व्याकुल तन हुआ, मन है बहुत उदास.

सुरसरि को दीं अस्थियाँ, सुधियाँ अपने पास..

*

आदम की औकात है, बस मुट्ठी भर राख.

पार गगन को भी करे, तुम जैसों की साख..

*

नयन मूँदते ही दिखे, झलक तुम्हारी नित्य.

आँख खुले तो चतुर्दिक, मिलता जगत अनित्य..

*****

कविता:

विरसा

संजीव 'सलिल'

*

तुमने

विरसे में छोड़ी है

अकथ-कथा

संघर्ष-त्याग की.

हमने

जीवन-यात्रा देखी

जीवट-श्रम,

बलिदान-आग की.

आये थे अनजान बटोही

बहुतों के

श्रृद्धा भाजन हो.

शिक्षा, ज्ञान, कर्म को अर्पित

तुम सारस्वत नीराजन हो.

हम करते संकल्प

कर्म की यह मशाल

बुझ ना पायेगी.

मिली प्रेरणा

तुमसे जिसको

वह पीढ़ी जय-जय गायेगी.

प्राण-दीप जल दे उजियारा

जग ज्योतित कर

तिमिर हरेगा.

सत्य सहाय जिसे हो

वह भी-

तरह तुम्हारी लक्ष्य वरेगा.

*****

प्रो. सत्यसहाय के प्रति :
स्मृति गीत:
मन न मानता...
संजीव 'सलिल'
*
मन न मानता
चले गये हो...
*
अभी-अभी तो यहीं कहीं थे.
आँख खुली तो कहीं नहीं थे..
अंतर्मन कहता है खुदसे-
साँस-आस से
छले गये हो...
*
नेह-नर्मदा की धारा थे.
श्रम-संयम का जयकारा थे..
भावी पीढ़ी के नयनों में-
स्वप्न सदृश तुम
पले गये हो...
*
दुर्बल तन में स्वस्थ-सुदृढ़ मन.
तुम दृढ़ संकल्पों के गुंजन..
जीवन उपवन में भ्रमरों संग-
सूर्य अस्त लाख़
ढले गये हो...
*****

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Comment

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Comment by sanjiv verma 'salil' on December 19, 2010 at 6:05pm

aap shok men sahbhagee hue... apsabko naman.


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Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 19, 2010 at 12:43pm

महान और विलक्षण प्रतिभा के धनी प्रो. सत्यसहाय श्रीवास्तव को मेरे तरफ से भी श्रन्धांजलि , ईश्वर आपकी आत्मा को शांति प्रदान करे |

Comment by Abhinav Arun on December 13, 2010 at 2:03pm
सच है सलिल जी ऐसी हस्ती का जाना एक युग का अंत है जिनका इतना योगदान और इतने विविधक्षेत्रों में |आपने इतनी महत्वपूर्ण सूचना से सदस्यों को अवगत करा कर बड़ा कार्य किया है | इश्वर महान आत्मा को सर्वोच्च  आसन दे| आपके स्वरों में हमारा भी स्वर शामिल है -

"अमिट प्रतिभा, अजित जीवट के धनी.
बहुमुखी सामर्थ्य, थे पक्के धुनी..
विरल देखे, अब कहाँ ऐसे सु-जन?
अनुकरण युग कर सके, वैसे गुनी..
सतत उन्नति की रही तुममें लगन..."

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Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय सुशील सरना जी, प्रस्तुति पर आने और मेरा उत्साहवर्द्धन करने के लिए आपका आभारी…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय भाई रामबली गुप्ता जी, आपसे दूरभाष के माध्यम से हुई बातचीत से मन बहुत प्रसन्न हुआ था।…"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आदरणीय समर साहेब,  इन कुछेक वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है। प्रत्येक शरीर की अपनी सीमाएँ होती…"
4 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
6 hours ago
Samar kabeer commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"भाई रामबली गुप्ता जी आदाब, बहुत अच्छे कुण्डलिया छंद लिखे आपने, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।"
11 hours ago
AMAN SINHA posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . विविध

दोहा पंचक. . . विविधदेख उजाला भोर का, डर कर भागी रात । कहीं उजागर रात की, हो ना जाए बात ।।गुलदानों…See More
yesterday
रामबली गुप्ता posted a blog post

कुंडलिया छंद

सामाजिक संदर्भ हों, कुछ हों लोकाचार। लेखन को इनके बिना, मिले नहीं आधार।। मिले नहीं आधार, सत्य के…See More
Tuesday
Yatharth Vishnu updated their profile
Monday
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Nov 8

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