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कविता :- माफ करना स्वस्तिका

कविता :- हमें माफ करना स्वस्तिका

हमें माफ करना स्वस्तिका

हमने भुला दी है इंसान होने की संवेदना

अब हमें तुम्हारे बलिदान सी घटनाएं नहीं हिलाती

सत्ता और संसार सभी चलते रहते अपनी राह

कोई नहीं ग्रस्त होता तुम्हारी हत्या के अपराध बोध से

कौन जान सकता है तुम्हारी आत्मा की पीड़ा

कि तुम् नहीं देख सकी दूसरे जन्मदिन के गुब्बारे

दोस्तों संग नहीं काट-बाट सकी केक

और समय से पहले ही बुझ गयी तुम्हारे जीवन की मोमबत्ती

धरी की धरी रह गयी माता पिता की तैयारियां |

हमें माफ करना स्वास्तिका

कि गंगा तट की सीढियां गवाह बनी इस अमानवीय कृत्य की

तुम नहीं देख सकी गंगा आरती की भव्यता

और अब सियासतदां देख रहे हैं अवशेष

शैतानी सभ्यता के

कर रहे जुबानी जमा खर्च

तुमपर और तुम्हारे जीवन के अनजीये दिनों पर

अब तो तुम्हे भूल गए हैं खबरिया चैनेल भी

तुम जिनकी ब्रेकिंग न्यूज बन बढ़ा गयी थी टी.आर.पी.

अखबार के वे पन्ने भी पहुँच गए परचून कि दूकान

तुम जिनपर छाई थी |

हमें माफ करना स्वस्तिका

कि हम भूल गए हैं कि हम इंसान बन पैदा हुए

कहने को ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना |

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Comment

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Comment by Abhinav Arun on December 13, 2010 at 1:36pm
दीप जी आभारी हूँ , आपने हौसला बढाया | 
Comment by DEEP ZIRVI on December 12, 2010 at 7:32pm

MARMSPRSHI

Comment by Abhinav Arun on December 11, 2010 at 7:10pm

गुरु जी आभारी हूँ |ऐसी घटनाएं समाज और साहित्य को विचलित करती है और हमें उनकी आवाज़ बननी चाहिए |

Comment by Rash Bihari Ravi on December 10, 2010 at 9:30pm

bahut badhia khubsurat

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