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!!!  अभिनव प्यार  !!!

 

प्रिया! जब तुम भूली,
तो मैं क्या लिखता ?
जब तुम थीं सब मेंरा था,
मैं याद भला क्या करता ?..... प्रिया! जब......

अब तुम नहीं पर प्यार तेरा,
मुझे बार बार दोहराता।
मैं भूल चला जीवन के पथ को,
स्मृति रोशन क्या करता ?...... प्रिया! जब...

पूर्ण अंधकार में इक जुगुनू,
इस झिलमिल जीवन को-
या अपनों से भूले रिश्तों का,
पथ प्रदर्शन क्या करता ?....... प्रिया! जब...

इस अभिनव प्यार संग,
द्वेष-भाव जो रखता।
ऐसे ठोस शिला हृदय में,
प्यार द्रवित क्या करता ?....... प्रिया! जब....

के0पी0सत्यम/मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by बृजेश नीरज on July 4, 2013 at 10:10pm

केवल भाई आपके इस सुंदर प्रयास पर आपको हार्दिक बधाई!

Comment by coontee mukerji on July 4, 2013 at 7:20pm

केवल जी , क्या बात है. आपकी रचना में तो वसंत छायी हुई है.बहुत सुंदर . सादर.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on July 4, 2013 at 5:58pm
आदरणीय..केवल जी, बहुत सुंदर व भावनाओं से पूर्ण रूप से डूबी हुई पंक्तियां! आदरणीय..रचना को पढ़ते समय, सच मानो ऐसा ही मन में विदित हो रहा है, जैसे कोइ प्रेमी, अपनी प्रेमिका के सम्मुख बैठ उसे कह रहा हो...."इस अभिनव प्यार संग, द्वेष-भाव जो रखता। ऐसे ठोस शिला हृदय में, प्यारद्रवित क्या करता ?.......""आदरणीय..इस प्यारी सी रचना पर, तहे दिल से शुभकामनाऐं व बधाई..
Comment by वेदिका on July 4, 2013 at 2:07pm

इस अभिनव प्यार संग, 
द्वेष-भाव जो रखता।
ऐसे ठोस शिला हृदय में, 
प्यार द्रवित क्या करता ? ,,,,सच्चा कथन 

बधाई स्वीकारें आदरणीय केवल प्रसाद जी! 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on July 4, 2013 at 12:51pm

सुन्दर भाव के लिए बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 4, 2013 at 12:48pm

कोई धुन थी क्या मन में जो गुनगुनाते जा रहे थे और शब्द टाइप होते गये .. :-))

ऐेसे में रचनाएँ भाव और शब्दों के साथ सुगढ अभिव्यक्तियों को जोहती हैं. आपका प्रयास आपसे और समय चाहता है, भाईजी. आपकी संवेदनशीलता प्रभावित करती है. 

शुभेच्छाएँ

Comment by D P Mathur on July 4, 2013 at 7:47am

आपकी रचना अभिनव प्यार , सच में अभिनव है !

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