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अब नहीं आयेगी बेटी

बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे, 
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे... 


क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे... 

आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां, 
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे... 

जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर, 
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे... 

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे... 

देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे...

निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे... 

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे... 

अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां, 
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे...

मौलिक एंव अप्रकाशित 

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Comment

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Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:14pm

नमस्कार वीनस केसरी जी 

रचना के भाव को समझने ओर आपके अमूल्य सुझाव के लिए तहे दिल से शुक्रिया 

आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:13pm

बहुत बहुत आभार रवि जी 

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 12:12pm

धन्यवाद प्रज्ञा जी 

Comment by Pragya Srivastava on June 7, 2013 at 11:04am

बहुत खूब

Comment by रविकर on June 7, 2013 at 10:06am

मार्मिक-

आभार आदरेया-

Comment by वीनस केसरी on June 7, 2013 at 12:47am

रोशनी जी,
इस भावप्रधान रचना के लिए बधाई स्वीकारें
स्पष्ट हो कर कहना सुनना भी अक्सर अच्छा लगता है और उस पर एक झीना सा आवरण डाल दिया जाए,,, बात रूपक और बिंब के माध्यम से हो वो भाव को विस्तार मिलता है

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे...

बहुत खूब

रचन ग़ज़ल विधा से प्रभावित है और बहुत करीब भी ...
मंच शिल्प के प्रति आग्रही है और आपसे भी विनम्र अपेक्षा है कि विधा सम्मत मूल तत्वों को निभाने का प्रयास होना चाहिए 
शुभकामनाएं

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 7, 2013 at 12:27am
आदरणीया रोशनी जी, अपनी सुंदर रचना में बिल्कुल सही कहा "हरेक के लिए अपनी बेटी, अपनी होती है व औरो की बेटी,! खुद की बेटी लाडली, औरो की बेटी ..." और यह फर्क हर जगह देखा जा सकता है ।...बेहतर रचना आदरणीया रोशनी जी "शुभ कमनाऐं "
Comment by coontee mukerji on June 6, 2013 at 9:13pm

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे........खूब कही

.अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे........सही कहा .

सादर

कुंती

Comment by वेदिका on June 6, 2013 at 8:03pm

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे... ... सटीक वार 

शुभकामनायें रोहिणी जी 

Comment by Abid ali mansoori on June 6, 2013 at 6:17pm
छू रही हैँ आसमां आज सब लड़कियां
इस ज़मी को कब उनके चलने लायक बनाओगे,
सच मेँ हमेँ महिलाओँ के प्रति अपनी ओछी मानसिकता को बदलना होगा,
बधाई रोशनी जी!

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