बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे,
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे...
क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे...
आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां,
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे...
जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर,
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे...
छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां,
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे...
देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे...
निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे...
अपनी बेटी बेटी है, औरों की बेटी माल है,
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे...
अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां,
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे...
Comment
दिव्या जी
लड़कियों पे जितने अत्याचार कम करने की बात चलती है अत्याचार ओर भी बढते जा रहे है .. न जाने कब ये आग बुझेगी ओर मासूम कब चैन से जियेगी
आपके विचारों एक लिए आभार
एक बार फिर से धन्यवाद जितेंदर जी ... आभार
रौशनी जी,
लड़कियों पे बढते अत्याचारों पे करारी चोट करती रचना
जाने जन चेतना कब आएगी
अच्छी रचना के लिए साधुवाद
धन्यवाद श्याम नारायण जी
आ० जवाहर जी
चाहे लड़कियां कितने भी आसमान छु ले मगर बेटे की चाह की जो हमारे समझ की सोच है वोह नहीं बदल सकती ... फर्क कल भी था ओर आज भी है .. ओर आज जिस तरह की घिनोनी हरकत लड़कियों के साथ हो रही है .. ऐसे में कौन बेचारी को ऐसी डर भरी जिंदगी देना चाहेगा ... समस्या बढती जा रही है .. इतनी तरक्की होने के बावजूद भी ..
आपके अमूल्य विचारों के लिए आभार
आ० आबिद जी नमस्कार
मानसिकता बदले बिना कुछ अच्छा होना मुश्किल है .... रचना पर सहमति के लिए आभार
आ ० गीतिका जी
तारीफ के लिए तहे दिल से शुक्रिया
आ ० कुंती जी नमस्कार
आज हम सब बस मोमबती लेकर विरोध कर रहे है .. मगर क्या इस विरोध को कोई परिणाम निकला है कभी ... मोमबती जलना आसान है मगर अपनी मानसिकता को बदलना शायद मुश्किल ... काश की अब भी सब जागे ओर बेटियों के प्रति होते जुल्म को रोके
आपके विचार के लिए आभार
आ० जितेंदर जी यही तो आज के समाज की विडम्बना है अपनी हर चीज़ प्यारी है मगर दूसरों के ऊपर ऊँगली उठाते हम एक पल भी नहीं सोचते .. अपनी इज्जत प्यारी ओर की मजाक ..रचना की सराहना के लिए आभार
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