For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अब नहीं आयेगी बेटी

बेटियों पे कब तलक बस यूँ ही लिखते जाओगे, 
कब हकीकत की जमीं पर आ के उन्हें बचाओगे... 


क्यों नहीं उठते हाथ और क्यों न करते सर कलम,
और कितनी दामिनीयों के लिए मोमबतियां जलाओगे... 

आज कहते हो की प्यारी होती है सब बेटियां, 
खुद मगर कब बेटों की चाह से निजात पाओगे... 

जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर, 
जिस्म मानव का है पर कब इंसानी रूह लाओगे... 

छु रही है आसमां आज की सब लड़कियां, 
इस जमीं को कब उसके चलने लायक बनाओगे... 

देखो क्या उसूल है मुजरिम की भी होती पैरवी ,
ऐसे माहौल में तो बस मुजरिम बढ़ाते जाओगे...

निकली थी बेख़ौफ़ सी घर से वोह जीने जिंदगी,
लुट गयी अब कैसे उसे जीने की राह दिखाओगे... 

अपनी बेटी बेटी है, औरों  की बेटी माल है, 
कब तलक ये दोहरा चेहरा अपनों से छुपाओगे... 

अब न आयेगी कभी इस जमीं पर बेटियां, 
अपनेपन ममता को एक दिन तरस जाओगे...

मौलिक एंव अप्रकाशित 

Views: 1111

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Roshni Dhir on June 8, 2013 at 11:22am

दिव्या जी एक बार फिर से धन्यवाद रचना के मर्म को समझने के लिए .. ये रोष ये दर्द हर एक दिल में आ जाये तो शायद कुछ सुधर सम्भव हो वरना हमे क्या है ... कुछ नहीं बदल सकता .. चलने दो .. सिर्फ शांति मार्च .. यही सब विचार आजकल हम सब के मन में रहते है ... इस भागदौड भरी जिंदगी में कौन किसी का हमदर्द है सब तमाशा देखते है ... 

मगर कोशिश यही है की एक न एक दिन तो ये जमीं बेटियों के चलने के लायक होगी ..

आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 8, 2013 at 11:20am

नमस्कार आ ० परदीप जी 

आप ने सही कहा की आपने ओर बहुत सारे लेखकों ने बार बार ओर कई बार लिखा मगर परिवर्तन नहीं आया.. आयेगा भी नहीं जब तक दोहरी मनसिकत रहेगी ... इसी दोहरी मानसिकता को ही व्यक्त करने की कोशिश करी थी मैंने ... खैर कोशिश जारी रखनी चाइए एक न एक दिन पथर पर भी रस्सी के निशान पड़ ही जाते है ..

आभार आपके समर्थन के लिए आभार 

Comment by Roshni Dhir on June 8, 2013 at 11:16am

ब्रिजेश जी एक बार फिर से आप के अमूल्य विचारों के लिए ओर सलाह के लिए  बहुत बहुत धन्यवाद .... 

आभार 

Comment by दिव्या on June 7, 2013 at 5:26pm

रौशनी जी हमेसा कि तरह एक महत्वपूर्ण विषय को केन्द्र में रख कर लिखी गयी कविता या फिर ये कहे कि एक कविता के माध्यम से आज समाज में बेटियों के प्रति व्याप्त स्थिति पर कवि ह्रदय से निकली रोष के शब्द. बहुत ही सही चित्रण किया है आपने पर समाज में बेटियों का एक और रूप भी है और जब तक वो रूप है तभी तक इस ब्रहमांड का अस्तित्व है.
जीवन यदि संगीत है तो सरगम
है बेटी ,
रिश्तो के कानन में भटके इन्सान
की मधुबन सी मुस्कान है बेटी,

जनक की फूलवारी में कभी प्रीत
की क्यारी में ,
रंग और सुगंध का महका गुलबाग
है बेटी ,

त्याग और स्नेह की सूरत है ,
दया और रिश्तो की मूरत है
बेटी ,

कण – कण है कोमल सुंदर
अनूप है बेटी ,
ह्रदय की लकीरो का सच्चा
रूप है है बेटी ,

अनुनय , विनय , अनुराग
है बेटी ,
इस वसुधा और रीत और प्रीत
का राग है बेटी ,

माता – पिता के मन का
वंदन है बेटी ,
भाई के ललाट का चंदन
है बेटी ।
बाकि तुम यूँ ही अपनी भावनाओ को  लिखती राहो ताकि बातें आम जन तक निर्बाध रूप से प्रवाहित हो सके.

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 7, 2013 at 4:58pm

स्नेही रोशनी जी 

सादर 

मैने भी बहुत लिखा . पर न समाज में परिवर्तन आया और न ही अपराध रुके. मेरे अलावा बहुतों ने लिखा. हम लोग लिख कर ही तो चेतना जाग्रत कर सकते हैं. बदलाव में समय भी लगता है . 

हमें लिखते रहना है .

बधाई सुन्दर भाव देने हेतु. जीती रहिये 

Comment by aman kumar on June 7, 2013 at 4:55pm

अच्छी रचना के लिए साधुवाद 

भाई ब्रिजेश जी से सहमत हु ! शब्द चयन भावना प्रदेशन मे  आड़े नही आते पर गलत शब्द  को कहेने के लिए उसी बात को बोलना कुछ ठीक नही लगता । 
पर रचना क्रन्तिकारी है बधाई ! 
Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 4:44pm

आदरणीया पहली बात तो यह कि आपसे रचना हटाने को किसी ने नहीं कहा। वैसे भी यह आदेश देने वाला मैं कौन होता हूं।
दूसरी बात कि जो भी लिखता है वह अपने मन के भावों को ही लिखता है। आप माल शब्द का प्रयोग करना चाहती हैं। बेशक करिए। ऐसे बहुत से और भी शब्द हैं उन्हें भी प्रयोग करें। मुझे कोई आपत्ति नहीं। समाज में और सड़क पर बहुत से शब्द प्रयोग होते हैं वे सबके सब न तो घर में प्रयोग किए जाते हैं और न ही साहित्य में।

Comment by Roshni Dhir on June 7, 2013 at 4:04pm

ब्रिजेश जी नमस्कार ..

मै सिर्फ ओर सिर्फ मन में उठने वाली भावनाये लिखती हूँ ओर किसी की भी रचना उन्ही भावनाओ के साथ पढती हूँ.. मेरे लिए कोई भी रचना एक गहरी भावना के बिना निरर्थक है .. रचना की विधा मै नहीं जानती न ही इतनी ज्ञानी हूँ की रचना लिख कर उसकी विधा समझा सकू ... रचना को साहित्य की विधा में आप ही या ओर आदरनिये जन बता सकते है .. मेरा ज्ञान इस बारे में कुछ भी नहीं है ... यु कहिये की विधा या तकनीक के बारे में मै कुछ नहीं जानती ... बस जानती हूँ तो दिल से लिखी भावनाये .. बेशक मेरी रचनाये साहित्य विधा में खरी नहीं उतरती मगर इंसानी भावनाओ , शब्दों को तो कुछ लिख ही लेती है ... अगर मेरी रचना साहित्य की सीमाओ से परे है तो आप सब के कहने पे मै इस यहाँ से हटा देती हूँ .... माल शब्द अगर समाज में है किसी को छेड़ने के लिए प्रयोग होता है तो फिर उसके दर्द को बयान करने के लिए कविता में क्यों नहीं प्रयोग कर सकते ... माफ़ी चाहती हूँ अगर कोई गुस्ताखी हो गयी हो ... फिर से कहना चाहूगी की मै किसी तरह की विधा को नहीं जानती ...इस लिए आपका मार्गदर्शन करने में असमर्थ हूँ ... आभार 

Comment by बृजेश नीरज on June 7, 2013 at 2:54pm

बहुत से विषय ऐसे होते हैं कि लोग उस विषय पर लिखी रचनाओं पर भावुक होकर टिप्पणी करते हैं। आपकी रचना का विषय भी ऐसा ही है।

रचना किस विधा में लिखी गयी है यह स्पष्ट नहीं है। रचनाकार द्वारा अक्सर बरती गयी ऐसी बचत पाठक को मुश्किल में डाल देती है। इसे यदि स्पष्ट कर सकें तो बहुत मेहरबानी होगी।

‘माल’ जैसे शब्दों का प्रयोग करने से मेरे विचार से साहित्यकार को बचना चाहिए।

//जानवर से इंसान बना और फिर भी रहा जानवर//

इस पंक्ति में ‘और’ के साथ ‘फिर भी’ के प्रयोग का औचित्य नहीं समझ सका।

आपसे मार्गदर्शन की अपेक्षा है।

सादर!

Comment by D P Mathur on June 7, 2013 at 1:01pm

बहुत अच्छी रचना !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Yatharth Vishnu updated their profile
10 hours ago
Sushil Sarna commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"वाह आदरणीय जी बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल बनी है ।दिल से मुबारकबाद कबूल फरमाएं सर ।"
Friday
Mamta gupta commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"जी सर आपकी बेहतरीन इस्लाह के लिए शुक्रिया 🙏 🌺  सुधार की कोशिश करती हूँ "
Thursday
Samar kabeer commented on Mamta gupta's blog post ग़ज़ल
"मुहतरमा ममता गुप्ता जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । 'जज़्बात के शोलों को…"
Wednesday
Samar kabeer commented on सालिक गणवीर's blog post ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...
"जनाब सालिक गणवीर जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें । मतले के सानी में…"
Wednesday
रामबली गुप्ता commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"आहा क्या कहने। बहुत ही सुंदर ग़ज़ल हुई है आदरणीय। हार्दिक बधाई स्वीकारें।"
Nov 4
Samar kabeer commented on Saurabh Pandey's blog post दीप को मौन बलना है हर हाल में // --सौरभ
"जनाब सौरभ पाण्डेय जी आदाब, बहुत समय बाद आपकी ग़ज़ल ओबीओ पर पढ़ने को मिली, बहुत च्छी ग़ज़ल कही आपने, इस…"
Nov 2
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहा (ग़ज़ल)

बह्र: 1212 1122 1212 22किसी के दिल में रहा पर किसी के घर में रहातमाम उम्र मैं तन्हा इसी सफ़र में…See More
Nov 1
सालिक गणवीर posted a blog post

ग़ज़ल ..और कितना बता दे टालूँ मैं...

२१२२-१२१२-२२/११२ और कितना बता दे टालूँ मैं क्यों न तुमको गले लगा लूँ मैं (१)छोड़ते ही नहीं ये ग़म…See More
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"चल मुसाफ़िर तोहफ़ों की ओर (लघुकथा) : इंसानों की आधुनिक दुनिया से डरी हुई प्रकृति की दुनिया के शासक…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"सादर नमस्कार। विषयांतर्गत बहुत बढ़िया सकारात्मक विचारोत्तेजक और प्रेरक रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-115
"आदाब। बेहतरीन सकारात्मक संदेश वाहक लघु लघुकथा से आयोजन का शुभारंभ करने हेतु हार्दिक बधाई आदरणीय मनन…"
Oct 31

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service