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गज़ल - तेरे मालिक से तो तेरा तलबगार अच्छा है

मांगने वाले से छीनने वाला हकदार अच्छा है 

हाल तो पूछ ही लिया चलो बीमार अच्छा है 

आज बोलता कुछ है कल कुछ और करता है 

शहर के सभी लोगों में तो कलाकार अच्छा है 

बड़ी आसानी से छुपा लेता वो दिल का ग़म 

लगता है महफिल का वो अदाकार अच्छा है 

बिन पाये दीवाना हूँ तो पाकर मर ही गया होता 

तेरे मालिक से तो तेरा तलबगार अच्छा है 

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Comment

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Comment by Yogendra Singh on May 31, 2013 at 11:29pm

धन्यवाद प्रियंका जी 

Comment by Yogendra Singh on May 31, 2013 at 11:27pm

सौरभ पांडे जी बहुत बहुत आभार 

बस कलाम के साथ मेरी जंग जारी है 

इस बार न जाने किस की बारी है ?

Comment by Yogendra Singh on May 31, 2013 at 11:26pm

बहुत बहुत शुक्रिया संदीप जी 

आपका आभार

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on May 31, 2013 at 11:30am

बहुत सुंदर प्रयास है आदरणीय
एक अश्आर और जोड़ दें इसमें
सादर बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 31, 2013 at 12:25am

आपके कहे की भावभूमि अत्यंत उर्वर है, भाईजी.  आप रचनाकर्म में शिल्प और विधान के ऊपर अवश्य ध्यान केन्द्रित करें, आशातीत सफलता मिलेगी. शुभेच्छाएँ.

Comment by Priyanka singh on May 30, 2013 at 11:00pm

सुन्दर......बधाई

Comment by बृजेश नीरज on May 30, 2013 at 9:38pm

अहहा! क्या बात है! बहुत ही सुन्दर! इस सुन्दर रचना पर मेरी बधाई स्वीकारें। 

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