For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस इतनी सी ख़ता हमारी

बस इतनी थी

खता हमारी

कि थोड़ा

जीना चाहा

कॉफी के

हर घूंट में हमने

कितना कुछ

पीना चाहा

मगर बेहया

इन रातों को

इतना भी

मंजूर न था

पलट हंसा

सारे प्रश्‍नों को

जब उत्‍तर कुछ

दूर ना था

और छपे तब

कितने किस्‍से

चेहरे के

अखबार में

समझ चुका था

गहन दहन ही

मिलता इस

संसार में

बस इतनी थी

ख़ता हमारी

कि थोड़ा

खिलना चाहा

स्‍ट्रेचर पर

पड़े समय से

बिना झिझक

मिलना चाहा

(सर्वथा मौलिक एवं अप्रकाशित)

Views: 481

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 26, 2013 at 7:53am

आदरणीय राजेश जी सादर, सुन्दर भावपूर्ण रचना, सादर बधाई स्वीकारें.

Comment by Meena Pathak on May 23, 2013 at 6:44pm

बस इतनी थी

ख़ता हमारी

कि थोड़ा

खिलना चाहा

स्‍ट्रेचर पर

पड़े समय से

बिना झिझक

मिलना चाहा..........................इस सुन्दर कविता के लिए बधाई स्वीकारें आ.राजेश जी 

Comment by बृजेश नीरज on May 22, 2013 at 9:29pm

सुंदर कविता है। बधाई आपको!

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 22, 2013 at 5:57pm

बस इतनी थी ख़ता हमारी

कि थोड़ा

खिलना चाहा स्‍ट्रेचर पर

पड़े समय से

बिना झिझक मिलना चाहा -मन के भाव बड़ी सुन्दरता से उकेरे है | हार्दिक बधाई श्री राजेश कुमार झा साहिब 

Comment by Abhinav Arun on May 22, 2013 at 9:31am

वाह राजेश जी कविता अच्छी लगी बधाई आपक्को !

Comment by राज लाली बटाला on May 21, 2013 at 9:01pm

Khoob hai Rajesh Kumar Jha ji 

Comment by Dr Ashutosh Vajpeyee on May 21, 2013 at 5:51pm

बहुत अच्छी रचना है बन्धु भाव पक्ष प्रबल है 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

सुरेश कुमार 'कल्याण' posted blog posts
9 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
10 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मनन कुमार सिंह जी। बोलचाल में दोनों चलते हैं: खिलवाना, खिलाना/खेलाना।…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आपका आभार उस्मानी जी। तू सब  के बदले  तुम सब  होना चाहिए।शेष ठीक है। पंच की उक्ति…"
23 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"रचना भावपूर्ण है,पर पात्राधिक्य से कथ्य बोझिल हुआ लगता है।कसावट और बारीक बनावट वांछित है। भाषा…"
23 hours ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदरणीय शेख उस्मानी साहिब जी प्रयास पर  आपकी  अमूल्य प्रतिक्रिया ने उसे समृद्ध किया ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"आदाब। इस बहुत ही दिलचस्प और गंभीर भी रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह साहिब।  ऐसे…"
yesterday
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"जेठांश "क्या?" "नहीं समझा?" "नहीं तो।" "तो सुन।तू छोटा है,मैं…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"हार्दिक स्वागत आदरणीय सुशील सरना साहिब। बढ़िया विषय और कथानक बढ़िया कथ्य लिए। हार्दिक बधाई। अंतिम…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"माँ ...... "पापा"। "हाँ बेटे, राहुल "। "पापा, कोर्ट का टाईम हो रहा है ।…"
yesterday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"वादी और वादियॉं (लघुकथा) : आज फ़िर देशवासी अपने बापू जी को भिन्न-भिन्न आयोजनों में याद कर रहे थे।…"
Thursday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-118
"स्वागतम "
Wednesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service