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मैं साकार कल्पना हूँ
मैं जीवंत प्रतिमा हूँ
मैं अखंड अविनाशी शक्तिस्वरूपा हूँ
मैं जननी हूँ,श्रष्टि का आरम्भ है मुझसे
मैं अलंकार हूँ,साहित्य सुसज्जित है मुझसे
मैं अलौकिक उपमा हूँ
मैं भक्ति हूँ,आराधना हूँ
मैं शाश्वत,सत्य और संवेदना हूँ

मैं निराकार हूँ,जीवन का आकार है मुझसे
मैं प्राण हूँ,सृजन का आधार है मुझसे
मैं नीति की संज्ञा हूँ
मैं उन्मुक्त आकांक्षा हूँ
मैं मनोज्ञा मंदाकिनी मधुरिमा हूँ

मैं अनर्थ को अर्थ देती परिकल्पना हूँ
मैं असत्य अधर्म अन्धकार की आलोचना हूँ
मैं अनंत आकाश की अभिव्यक्ति हूँ
मैं सहनशील हूँ समर्थ हूँ,मैं शक्ति हूँ

मेरा कोई रूप नहीं दूसरा
मैं स्वयं का प्रतिबिम्ब हूँ
मेरा कोई अर्थ नही दूसरा
मैं शब्द्मुक्त हूँ मैं पूर्ण हूँ
मैं नारी हूँ

(एकता नाहर)

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Comment by Raj Kumar Rohilla on June 26, 2012 at 10:49pm

ekta nahar ji aapne jo likha bilkul satya hai.mai bhi manta hun.lekin fir bhi itni sadiya beet gayi kya itni sundar aur sahsi naari keval sabdon me hi rahegi ya uska aisa roop har naari me dkhne ko milega.

aaj bhi purush ka ek bada varg naari ki abhivayakti n sawtantarta ko saveekar nahin kar paata hai.

aisa kyun hai?

Raj kumar rohilla

Comment by Veerendra Jain on November 29, 2010 at 11:14am
bahut hi umda kavita likhi hai aapne...ekta...har ek shabd nari ke purna astitva ko reflect karta hai...bahut bahut badhayi...
Comment by Raju on November 28, 2010 at 8:35pm
Ekta jee aapne Nari ki sampurnata ka bakhan apni kavita me bahut hi satik dhang se kiya hai......... lajawab Kavita.
Comment by Ekta Nahar on November 28, 2010 at 10:26am
mujhe protsaahit karne ke liye aap sabhi kaa tahe dil se shukriya...
Comment by आशीष यादव on November 27, 2010 at 11:38pm
Waah ekta ji, aapne nari ki sampurnata ko pradarshit kar diya. itni khubsurat kavita, waah.

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