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हे ब्रम्हा जी की रचना से निर्मित मानव
तुम सोचो मानव
क्या मैने ये ठीक किया था युध्द कराकर,
क्या मैने ये ठीक किया दो पक्छ लडाकर
तुम्ही बताओ क्या मै इसका उत्तरदायी हू
तुम सोचो मानव

राजदूत बनकर पाण्डव का जब मै पंहुचा
बस गाँव मांगने पाँच और कुछ भी न ज्यादा
क्या मै और मेरा राज्य था इतना दुर्बल मानव
कुछ अपने हिस्से के गाँव उन्हे मै दे न पाता
किन्तु उन्हे दे देता तो ये युध्द न होता
क्या मैने ये ठीक किया था बात बढाकर
तुम सोचो मानव

जब मै पँहुचा चीरहरण मे चीर बढाने
एक बेबस अबला की जग मे लाज बचाने
वीर धरा के सारे बैठे मूक वहाँ थे
क्यो नही बताया मै हि ईशवर उन्हे वहाँ पे
किन्तु उन्हे दे देता परिचय युध्द न होता
क्या मैने ये ठीक किया था रुप छिपाकर
तुम सोचो मानव

औ जब अर्जुन ने छोड दिया था गांडीव अपना
रण के बीचोबीच और सब लगे सोचने
कि अब लगता है जैसे कि अब युध्द न होगा
शुरू किया फिर क्यो मैने उपदेश सुनाना
किन्तु उन्हे उपदेश न देता युध्द न होता
क्या मैने यह ठीक किया उपदेश सुनाकर
तुम सोचो मानव

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Comment by manoj shukla on April 11, 2013 at 1:02pm
आपका हार्दिक आभार संदीप जी
Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 11, 2013 at 12:33pm

आदरणीय मनोज जी

शास्त्र सम्मत मुझे जितना ज्ञान है उसके अनुसार प्रभु ने ये युद्ध धर्म की पुनः स्थापना करने हेतु किया था
"जब जब होई धर्म की हानि"
कुछ तो ऐसा करना ही होता है
उन्होने ने भी जीव मात्र को यही शिक्षा दी है के अपने धर्म से डिगना नहीं है और अधर्म का नाश करना है
फिर भले उसके रास्ते में रिस्ते नाते दीवार बन खड़े हों

इस एक मात्र उपदेश की कमी लगी आपकी रचना में
साधुवाद

Comment by manoj shukla on April 11, 2013 at 9:07am
आदर्णीय कुन्ती जी सादर आभार आपका.... इस रचना के माध्यम से मै यह कहने का प्रयास करता हूँ कि भगवान श्री कृष्ण चाहते थे कि महाभारत हो. श्री कृष्ण ने कोई अनुचित कार्य नही किया क्योकि मेरे अनुसार कभी कभी धर्म की रक्षा हेतू धर्मयुध्द आवश्यक हो जाता है. यदि इस विचार को स्पष्ट रूप से कहने का प्रयास करता तो उतना प्रभावकारी न रह जाता. अतः मैने अपने रचना के माध्यम से उपरोक्त विचार पाठको के मन मे स्वयं उत्पन्न हो सके इसका प्रयास किया है.
Comment by coontee mukerji on April 11, 2013 at 12:04am

मनोज शुक्ला जी , आपकी कविता की थीम तो बहुत अच्छी है  .लेकिन आलोचना की दृष्टि से बहुत सी कमियाँ है  . कर्ता का प्रश्न , के

साथ संदेश  श्पष्ट नहीं है. मैं कई बार पठन के बाद इस निश्चय पर पहूँची हूँ. आपको बहुत बहुत ध्न्यवाद .

Comment by manoj shukla on April 10, 2013 at 3:30pm
आपका हार्दिक आभार ' वेदिका ' जीँ
Comment by वेदिका on April 10, 2013 at 1:52pm

सुंदर विचार कहे आपने आदरणीय ........ मानव का एक विवेक है जिसे कोई भगवन नही बल्कि स्वयं को ही जगाना होता है ...किसी भी घटना/ दुर्घटना के लिए कोई और नही बल्कि हमारी ही विचार धारा, बुद्धि ही दोषी है।    उपदेश युद्ध के लिए बल्कि स्वयं के स्वयित्ता की रक्षा हेतु था .....कर्म करने हेतु था ...!


बहरहाल शुभकामनायें स्वीकारे  आदरणीय मनोज जी!
सादर गीतिका 'वेदिका'

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