For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कथा......‘‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम...........।‘‘

गतांक-1 से आगे......सतसंग में हजारों का गुप्त दान करके स्वयं को धन्य समझ लेते हैं किन्तु रिक्शे वाले को पूरे पांच रूपये भी नहीं देना चाहते हैं। ईश्वर प्राप्ति हेतु अपने जिज्ञासु मन को सतसंग परिसर के गेट पर नमस्कार के साथ ही टांग देते हैं और जैसे आये थे, ठीक वैसे ही पुनः घर की ओर खाली मन, अज्ञान, संसारिक माया -मोह, व्यापार -व्यवहार आदि जंजाल के साथ चल पड़ते हैं। गृह में प्रवेश करते ही बहुओं, नौकरो आदि पर अव्यवहारिक बातें मढ़़ते हुए प्रपंच शुरू कर देते हैं। यहां तक कुछ लोग तो सतसंग में भी सुबह का हलुवा, नाश्ता और काम वाली बाई को बरतन, कपड़े आदि देने जैसी व्यर्थ की बाते करना नहीं भूलते हैं। फलतः गुरूजी ने कब ज्ञान का पैकेट जिज्ञासुओं में बांट दिया, इन्हें हवा भी नही लगती है और ऐसे लोग ही बाद में गुरूजी की भर्तसना करने से भी नहीं चूकते हैं। ऐसे हैं नश्वर जगत के जीव। बीमार को क्या चाहिए-दवा और दुवा। दवा न भी मिले तो कोई बात नहीं, किन्तु उसे संतुष्टि-आराम- संतोष-विश्वास कुछ तो मिलना ही चाहिए। इसके प्रतिकूल जब जीव जगह-जगह जाता है और अहं, मद, में धन, पराक्रम आदि सब कुछ व्यय कर देता है। तब जीव को ईश्वर का अनायास ही ध्यान आ जाता है, जो उसके अन्दर सदगुरू बन बैठा है। जिसे वह अपने जन्म के साथ ही भुला देता है और यह तभी याद आता है जब जीव का अस्थित्व पुनः उसी उद्गम केन्द्र में विलय होने का समय आता है।
                               आज कुछ ऐसा ही हो रहा था। ऐसा प्रतीत हो रहा था कि अब जीव का अन्त समय अति निकट है। पल भर का भरोसा नहीं रह गया था। अचानक ही अपना सब कुछ खोते हुए, देख स्वतः ही ज्ञान चक्षु खुल गये और अपनी 40 वर्षो की भगवत भक्ति, दया-दान, पुन्य-पाप, धर्म-कर्म आदि का लेखा जोखा मात्र दो-तीन सेकेन्ड में कर लिया था। शायद मेरे जीवन में मैंने किसी से बैर नहीं किया था और न ही मुझे कोई ऐसा व्यक्ति दिखाई दिया, जिसका मैं बैरी होउं। मैंने किसी जीव से से कुछ नहीं लिया था। बल्कि यथासम्भव- यथा सामथ्र्य सभी को कुछ न कुछ दिया ही था। फिर भी मैंने कुुछ एक को ऐसा पाया जो शायद शंकावश मुझसे अप्रसन्न लग रहे थे। सो मैंने तत्काल प्रभु से उनके लिये क्षमा मांगा क्योंकि उनकी प्रकृति और व्यवहार को बदलने वाला भला मैं कौेन था? जिनका मैं किसी तरह कोई उपकार कर सकता था, उसके लिए भी मैंने उस परमपिता परमेश्वर से दया की भीख मांगी। हे! ईश्वर अमुक व्यक्ति का जो कार्य मेरे प्रयास द्वारा होना था, उसके लिए आप किसी अन्य को व्यवस्थित कर देना क्योंकि मैं तो शून्य की ओर जा रहा हूं। ऐसा इसलिए भी लग रहा था कि जो समर्थ हैं, उन्हे ईश्वर क्षण मात्र में वैज्ञानिक विधियों से तत्काल राहत पहुंचा रहे हैं। और वह ईश्वर ही है, जो मुझे 10-12 वर्षो से बस दर्द ही दिये जा रहा था। मुझे फिर भी किसी से कोई शिकायत नहीं थी। बस विश्वास था। अपने उस क्षणिक बाल्यकाल का जिसमें मैंने अपने इष्टदेव श्री हनुमानजी की पूजा की थी। पूजा की विधि तो आज भी नहीं ज्ञात है किन्तु जैसा लोगों से सुना और जितना मैं कर सकता था, बडे़ ही लगन और श्रध्दा के साथ अर्चना किया करता था। यहां तक कि मैं अपने ईष्टदेव को कभी भी स्वयं से अलग नही पाता था। यदा-कदा मेरे स्वप्न में भी आकर मुझे भविष्य और ज्ञान की बात बता जाया करते थे, और मैं उनका अनुकरण ही करता रहता था। जैसे ही मुझे आभास हुआ कि आज मेरी अन्त बेला आ गई है। मैंेने सारा बन्धन खोलकर अपने ईष्टदेव के हाथों में पकड़ा दिया और मैं तैयार हो गया, चिर आनन्द विहार के लिए। सहसा एक किरन जुगुनु सी झिलमिल कर गई। शायद मेरे भगवान ने ही यह आशा रूपी एक किरन प्रस्फुटित हो मन में आश्रय पा गई। पलभर में ही मेरा मन अनायास बदल गया। मैं यह नहीं समझ पा रहा था कि यह सब कैसे हो रहा है? मेरे मुख- मस्तिष्क में बस हनुमान चालीसा का पाठ चल रहा था और क्रमिक रूप से चलता ही रहा। ....क्रमशः3

Views: 558

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 10, 2013 at 11:24pm

आ0 अशोक कुमार रक्ताले जी,  हां जी, प्रभु प्रेम क्या कुछ नही करता है, सब उसी का दिया है।  आपने पूरी कथा पढ़ी। आपके आशीष भरे स्नेह से मै कृत्य कृत्य हो गया। आपका हार्दिक आभार। सादर, 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 10, 2013 at 10:22pm

 "ईश्वर प्राप्ति हेतु अपने जिज्ञासु मन को सतसंग परिसर के गेट पर नमस्कार के साथ ही टांग देते हैं और जैसे आये थे, ठीक वैसे ही पुनः घर की ओर खाली मन, अज्ञान, संसारिक माया -मोह, व्यापार -व्यवहार आदि जंजाल के साथ चल पड़ते हैं"

बिलकुल सही कहा है आपने आदरणीय केवल प्रसाद जी.

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 7:45pm

आदरणीय श्रीडा0 स्वर्ण जे0 ओंकार जी, आपको इस कथा..‘जो ध्यावे फल पावे सुख लाये तेरो नाम.....।‘ में ईश्वर भविष्य की राह को और रोचक गति देने वाले हैं। आपका हार्दिक आभार। सादर,

Comment by Dr. Swaran J. Omcawr on April 4, 2013 at 5:58pm

 प्रिय केवल प्रसाद जी 

आप की  अर्थ पूरण विचार प्रक्रिया सम्मोहित कर रही है।  आने वाली कड़ियों का  इंतज़ार है।
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 3, 2013 at 6:43pm

आदरणीय राजेश कुमार झा जी, आपका बहुत-बहुत आभार।  सादर,

Comment by राजेश 'मृदु' on April 3, 2013 at 1:01pm

बहुत ही सुंदर भाव धरा पर रचना चल रही है, ऐसा लग रहा है कि आत्‍ममंथन एवं चिंतन दोनों साथ चल रहे हैं । आप लिखते रहें, सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"राखी     का    त्योहार    है, प्रेम - पर्व …"
18 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-177
"दोहे- ******* अनुपम है जग में बहुत, राखी का त्यौहार कच्चे  धागे  जब  बनें, …"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"रजाई को सौड़ कहाँ, अर्थात, किस क्षेत्र में, बोला जाता है ? "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post पूनम की रात (दोहा गज़ल )
"मार्गदर्शन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post कुंडलिया
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय  सौड़ का अर्थ मुख्यतः रजाई लिया जाता है श्रीमान "
Thursday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"हृदयतल से आभार आदरणीय 🙏"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"आदरणीय सौरभ भाई , दिल  से से कही ग़ज़ल को आपने उतनी ही गहराई से समझ कर और अपना कर मेरी मेनहत सफल…"
Wednesday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय सौरभ भाई , गज़ाल पर उपस्थित हो उत्साह वर्धन करने के लिए आपका ह्रदय से आभार | दो शेरों का आपको…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post तरही ग़ज़ल - गिरिराज भंडारी
"इस प्रस्तुति के अश’आर हमने बार-बार देखे और पढ़े. जो वाकई इस वक्त सोच के करीब लगे उन्हें रख रह…"
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज भाईजी, बहरे कामिल पर कोई कोशिश कठिन होती है. आपने जो कोशिश की है वह वस्तुतः श्लाघनीय…"
Wednesday
Aazi Tamaam replied to Ajay Tiwari's discussion मिर्ज़ा ग़ालिब द्वारा इस्तेमाल की गईं बह्रें और उनके उदहारण in the group ग़ज़ल की कक्षा
"बेहद खूबसूरत जानकारी साझा करने के लिए तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय ग़ालिब साहब का लेखन मुझे बहुत पसंद…"
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service