आयो होली को त्यौहार
रंग सतरंगी लेकर आई एक छैलछबिली नार,
आ के पास कर गई मेरे रंग बिरंगे गाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.
भये भुनसारे घर से निकली होलियायो की टोली.
गाली मोहल्ले घूम घूम के करत हँसी ठिठोली.
कभी भीगांवे पिचकारी से, कभी लगाये गुलाल।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
(एक तरफ पति पत्नी के साथ होली खेलने के लिये बैचेन है परंतु घर पे माता पिता के सामने बेचारा होली खेले भी तो कैसे ये बात पत्नी जानती है और वो पति को चिढाने के लिये बार बार उसके सामने से निकलती है और गाती है)
सास ससुर जी द्वारे बैठे, कैसे खेलू होली,
आतुर बैचेन पिया संग, मै खेलु आंख मिचौली,
बैठे है तैयार पिया जी, पर गले न उनकी दाल.
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
( पति पत्नी की चालाकी भरी अदा को भाप जाता है और उसको आंखो के कानेक्शन से दिल की आवाज मे सन्देशा भेजता है की )
बिना रंगे तो तोहे सजनी, मै जाने न दू होली,
रंग उडॆलू तुझपे ऐसो, भींगे तेरी दामन चोली ,
प्यार के रंग मे रंग दू तोहे ,कर दु हरो लाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
( दूसरी तरफ ससुराल मे दामाद की पहली होली है. साले साली सब बेसब्री से जीजा का इंतजार करते है और सालीया अपनी सहेलीयो से आपस मे बाते करते कहती है तो कही लडका ससुराल से लौटने के बाद दोस्तो को आप बीती सुनाता है की )
अब के होली खेलूगी मै अपने, नये जीजा के संग,
मस्ती -बस्ती खूब करेंगे, होगी खूब हुड्दंग,
याद करेंगे जीजा कहके, है मेरी रंगरेजो की ससुराल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
बात बात मे खा गये भाईया हम तो भंग की गोली,
ससुरा हम को तोप लगे और सासु बन्दूक की गोली,
हसंते हसंते हो गओ भाईया, अपनो हाल बेहाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.
( जब घर से दूर प्रेमी हो तो प्रेमिका जलती होली देख चाँद को अपना दुखडा सुनाती है तो कही कुंवारा लडका सजी धजी औरतो को देख के मन ही मन आहे भरता है की )
बिन प्रीतम के होली नही, जलता है ये मन.
पिचकारी से गोली छुटे, छ्लनी होवे ये तन.
सखी सहेली चुटकी काटॆ मारे तानो की मार ।
कि क्यु आयो होली को त्यौहार्, की क्यु आयो होली को त्यौहार् ॥
अब के फागुन फिर से भाईया, सुखो सुखो बीतो जाये.
देख मोहल्ले की भौजी , अपनो मन भी ललचाये.
न जाने कब वो आयेगी कर के सोलह श्रंगार ।
कि क्यु आयो होली को त्यौहार्, की क्यु आयो होली को त्यौहार् ।।
(ये चार लाइन सब के लिये )
खुब मनाओ होली खेलो प्यार का रंग गुलाल
प्रीत के रंग मे रंग लो सब को, जो छुटे न सालो साल
लालच स्वार्थ बेईमानी का करो दाह संस्कार ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.
रंग सतरंगी लेकर आई एक छैलछबिली नार,
आ के पास कर गई मेरे रंग बिरंगे गाल ।
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥.
"मौलिक व अप्रकाशित"
Comment
बसंत नेमा जी,होली के विविध रंगों से सजी अत्यंत सुन्दर रचना,मन को अनेक रंगों में डुबो रही है।बधाई हो।
"आदरणीय विजय् जी और आ. योगी जी रचना को पसंद करने के लिए आभार व धन्यवाद" आगे भी आप से ऐसे ही सहयोग और मार्ग दर्शन की अपेक्षा करता रहुंगा ,,,,,
सास ससुर जी द्वारे बैठे, कैसे खेलू होली,
आतुर बैचेन पिया संग, मै खेलु आंख मिचौली,
बैठे है तैयार पिया जी, पर गले न उनकी दाल.
कि आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
आदरणीय बसंत जी , रंगों के त्यौहार होली के अवसर पर बहुत सुन्दर पंक्तियाँ आई हैं आपकी ! बहुत बढ़िया
आदरणीय बसंत जी:
अभी-अभी आपने मुझको "chat" पर बुला कर अपनी कविता होली से अवगत कराया,
इसके लिए धन्यवाद।
कविता पढ़ कर आनन्द आया ... लगा कि हम भी उस खेल में शामिल थे।
सादर और सस्नेह,
विजय निकोर
बहुत खूबसूरत रंग बिखेरे हैं आपने होली के अवसर पर आ. बसंत नेमा जी..
कहीं लुका छिपी और इशारों में छेड़ना, तो कहीं विरह की होली, कहीं ससुराल में दामाद तो कहीं जीजा साली की ठिठोली.
रिश्तों में से होली के इन विविध रंगों को चुन कर लोक-गीत के सम काव्य में ढालने के लिए हार्दिक बधाई
शुभकामनाएं
"आदरणीय जवाहर जी और अजय जी रचना को पसंद करने के लिए आभार व धन्यवाद" आगे भी आप से ऐसे ही सहयोग और मार्ग दर्शन की अपेक्षा करता रहुंगा ,,,,,
बेहतरीन रचना पढ़ पढ़ के, मेरो मन हुए बहाल
आयो होली को त्यौहार्, कि आयो होली को त्यौहार् ॥
बहुत ही सुन्दर !
adarniy nema ji bakt ke pahle hi aapne rang se sarabore kar diya badhai
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