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अपनी गलती को प्रिये! मत समझो तुम भार।
दूध फटा तो क्या हुआ, कर पनीर तैयार॥

जीवन का उद्देश्य क्या, मिला हमें क्यों जन्म।
परमपिता को याद कर, करें निरन्तर कर्म॥

घृणा और पर डाह से, हो खुशियों का नाश।
प्रेम और सद्भाव से, मन में भरे प्रकाश॥

प्रेम और विश्वास हैं, दोनों एक समान।
जबरन ये न हो सके, चाहे जाये जान॥

दृश्य बदलते हैं प्रिये! बदलो अपनी दृष्टि।
निज नजरों के दोष से, दोषी दिखती सृष्टि॥

मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी प्रतिदिन भूलता, उनका हर अहसान॥

मेरी चिंता है जिसे, मुझको रखता याद।
वह ईश्वर कैसे मुझे, दे सकता अवसाद॥

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Comment by वेदिका on March 14, 2013 at 1:53am

मेरी गलती भूलते, प्रतिदिन ही भगवान।
मैं भी जाता भूल हूँ, उनका हर अहसान॥

वाह वाह विन्धेश्वरी त्रिपाठी जी! अच्छी तरह से साधना करी है आपने रचनात्मकता की। देर तक मुस्काती हुयी शुभकामनाएं :))))))))
सादर 

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