For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

शिशिर (नवगीत पर एक प्रयास)

शीत जैसे जम गयी,

नम धूप लगती है।

 

ठिठुरते रात भर

सार में सारे ही पशु

भोर कि शाला में

ठिठुरते सारे ही शिशु,

फिजां रंगीन दिखे

मन रूप लगती है।

 

द्वार बंद है शाम से बंद

खिडकी और झरोखे,

द्वार पर होती हो दस्तक

कम हैं ऐसे भी मौके,

करें तंग दरारें,गुजरती

हवा खूब लगती है। 

 

उपरोक्त  रचना स्वरचित व अप्रकाशित है. 

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 8:54am

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, आपसे अनुमोदन पाकर नया मार्ग प्रशस्त हुआ. चूप शब्द को मैंने खामोशी की निरंतरता को दिखाने के उद्देश्य से लिखा है. कई बार ऐसे उच्चारण में चुप शब्द को सुना है, अवश्य ही वह चुप का अपभ्रंश होगा. आप कह रहे हैं तो अवश्य ही मुझे इसे बदलना होगा.मै शीघ्र ही इस पंक्ति को बदलने का प्रयास करता हूँ. सादर.

Comment by Ashok Kumar Raktale on January 31, 2013 at 8:40am

आदरणीय श्याम नारेन वर्मा जी,आद. संदीप जी आद. नादिर खान साहब सादर आप सब से प्रोत्साहन पाकर मेरा मनोबल बढ़ा है. आप सभी के सहयोग के लिए हार्दिक आभार.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 30, 2013 at 11:31pm

यह एक सार्थक प्रयास हुआ है, आदरणीय अशोकभाई. आपका प्रयासरत होना और विविध विधाओं के प्रति गंभीरता रोमांचित कर देती है.

वैसे, चूप का अर्थ क्या होता है ? क्या यह चुप शब्द है ?

Comment by नादिर ख़ान on January 30, 2013 at 10:59pm

आपकी रचना ने ठंड का एहसास बढ़ा दिया है 

बहुत बढ़िया ..

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on January 30, 2013 at 6:19pm

अच्छा प्रयास सर जी ......

Comment by Shyam Narain Verma on January 30, 2013 at 4:41pm

BAHOT KHOOB..................

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब साथियो। त्योहारों की बेला की व्यस्तता के बाद अब है इंतज़ार लघुकथा गोष्ठी में विषय मुक्त सार्थक…"
12 hours ago
Jaihind Raipuri commented on Admin's group आंचलिक साहित्य
"गीत (छत्तीसगढ़ी ) जय छत्तीसगढ़ जय-जय छत्तीसगढ़ माटी म ओ तोर मंईया मया हे अब्बड़ जय छत्तीसगढ़ जय-जय…"
17 hours ago
LEKHRAJ MEENA is now a member of Open Books Online
Wednesday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"शेर क्रमांक 2 में 'जो बह्र ए ग़म में छोड़ गया' और 'याद आ गया' को स्वतंत्र…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"मुशायरा समाप्त होने को है। मुशायरे में भाग लेने वाले सभी सदस्यों के प्रति हार्दिक आभार। आपकी…"
Sunday
Tilak Raj Kapoor updated their profile
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई जयहिन्द जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है और गुणीजनो के सुझाव से यह निखर गयी है। हार्दिक…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई विकास जी बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. मंजीत कौर जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है।गुणीजनो के सुझाव से यह और निखर गयी है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। मार्गदर्शन के लिए आभार।"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेन्द्र कुमार जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। समाँ वास्तव में काफिया में उचित नही…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service