For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत ग़ज़ल की देह तौलते ,,,,,,,,,,,,,,,,,

बदल गयी नीयति दर्पण की चेहेरो को अपमान मिले हैं !
निष्ठायों को वर्तमान में नित ऐसे अवसान मिले हैं !!

शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे !
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले हैं !!

चाह कैक्टसी नागफनी के शौक़ जहाँ पलते हों केवल
ऐसे आँगन में तुलसी को जीवन के वरदान मिले हैं !!

भाग दौड़ के इस जीवन में , मतले बदल गए गज़लों के
केवल शो केसों में सजते ग़ालिब के दीवान मिले हैं !!

गीत ग़ज़ल की देह तौलते अक्सर सुनने वाले देखा !
मन का बोझ बाँट ले ऐसे केवल कुछ इंसान मिले हैं !!

कोई मील का पत्थर बनना क्यों बोलो स्वीकार करे !
हर युग में जब संगमरमर को महलों के सम्मान मिले हैं !!

प्रगति हुयी कुछ ऎसी गति से , उलटे सभी विधान हुए !
कमरों में हरियाली देखी , उपवन सब वीरान मिले हैं !!

Views: 326

Facebook

You Might Be Interested In ...

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमि तेष on December 26, 2012 at 11:34pm

भाग दौड़ के इस जीवन में , मतले बदल गए गज़लों के 
केवल शो केसों में सजते ग़ालिब के दीवान मिले हैं !!
वाह 

Comment by MAHIMA SHREE on December 26, 2012 at 5:34pm

कोई मील का पत्थर बनना क्यों बोलो स्वीकार करे !
हर युग में जब संगमरमर को महलों के सम्मान मिले हैं !!

प्रगति हुयी कुछ ऎसी गति से , उलटे सभी विधान हुए !
कमरों में हरियाली देखी , उपवन सब वीरान मिले हैं
वाह बहुत ही बढ़िया ... बधाई आपको

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on December 26, 2012 at 4:34pm

शहरों को रोशन कर डाला गावों में भर कर अंधियारे !
परिवर्तन की मनमानी में पनघट लहूलूहान मिले हैं !!

आदरणीय अजय जी सादर 

बहुत खूब 

बधाई. 

Comment by Shyam Narain Verma on December 25, 2012 at 1:07pm

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। बहुत सुंदर और भावप्रधान गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
5 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"सीख गये - गजल ***** जब से हम भी पाप कमाना सीख गये गंगा  जी  में  खूब …"
4 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"पुनः आऊंगा माँ  ------------------ चलती रहेंगी साँसें तेरे गीत गुनगुनाऊंगा माँ , बूँद-बूँद…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"एक ग़ज़ल २२   २२   २२   २२   २२   …"
11 hours ago
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173
"स्वागतम"
22 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-173

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
23 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय चेतन जी सृजन के भावों को मान और सुझाव देने का दिल से आभार आदरणीय जी"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आदरणीय गिरिराज जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी प्रतिक्रिया से उत्साहवर्धन हुआ। स्नेह के लिए आभार।"
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और प्रशंसा के लिए आभार।"
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहे -रिश्ता
"आदरनीय लक्ष्मण भाई  , रिश्तों पर सार्थक दोहों की रचना के लिए बधाई "
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . विरह शृंगार
"आ. सुशील  भाई  , विरह पर रचे आपके दोहे अच्छे  लगे ,  रचना  के लिए आपको…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service