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जब वो आते धूम मचाते

मन अंतर पर वो छा जाते

खुशियों के लाते उपहार,

क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार.

 

 

रंग गेहुआ कड़कदार वो

बच्चों बूढों सबका यार वो

भटके, फिर भी वो गली गली

क्या सखी साजन? नहीं मूंगफली.

 

 

घुले हवा जब उसकी खुशबू

रहे नहीं तब मन पर काबू

दिल पर छाए उसका जलवा

क्या सखी साजन? नहीं सखी हलवा.

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:56pm

आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, सराहना द्वारा उत्साहवर्धन करने हेतु बहुत बहुत आभार. 


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 7, 2012 at 2:49pm

सुन्दर कहमुकरियाँ कही हैं डॉ प्राची जी, बधाई स्वीकार करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:39pm

हार्दिक आभार राजेश कुमार झा जी , 

आपने सही कहा, यह विधा बहुत ही सुन्दर है.

असल में कह-मुकरी दो सखियों के बीच का वार्तालाप है, जिसमे एक सखी बातों बातों में (बद्खायाली में ) अपने प्रिय की बात बता देती है,फिर दूसरी सखी पूछती है तो मुकर जाती है, की नहीं मैं तो किसी और के बारे में बात कर रही थी.

इस विधा के शिल्प के बारे में जितना मुझे ज्ञात है, उस अनुसार 

इसमें चार चरण होते है व प्रत्येक चरण में १६-१६ मात्राएँ होती हैं , चरणों का अंत समतुकांत होता है. अंत में यदि दीर्घ हो तो गेयता में बढ़ोतरी होती है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:25pm

कहमुकरियाँ आपको पसंद आयीं इस हेतू हार्दिक आभार आदरणीया राजेश कुमारी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:24pm

हार्दिक आभार आदरणीय सतीश मापत्पुरी जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:23pm

हार्दिक आभार आदरणीय अविनाश जी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 7, 2012 at 2:22pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय लक्ष्मण प्रसाद लडिवाला जी 

Comment by राजेश 'मृदु' on November 7, 2012 at 2:18pm

बड़ी सुंदर विधा है एवं उतनी ही अच्‍छी प्रस्‍तुति । इसके शिल्‍प,विन्‍यास के बारे में जानना चाहता हूं । कुछ जानकारी दें तो बड़ा अच्‍छा हो


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on November 7, 2012 at 9:49am

सुन्दर सामयिक कह्मुकरियाँ प्रिय  प्राची जी 

Comment by satish mapatpuri on November 7, 2012 at 1:07am

जब वो आते धूम मचाते

मन अंतर पर वो छा जाते

खुशियों के लाते उपहार,

क्या सखी साजन? नहीं त्यौहार. ......  बहुत खूब  सम्मानित प्राची जी , बधाई

कृपया ध्यान दे...

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